हिंदी दिवस समारोह व कवि सम्मेलन में हिंदी के विद्यार्थी जो अध्यापक सम्मानित, हिंदी भवन समिति ने किया शानदार आयोजन
गाजियाबाद। वरिष्ठ गीतकार डाक्टर बुद्धिनाथ मिश्र का कहना है कि भारत का सिर्फ एक नाम हिंदी में होना चाहिए- भारत। अंग्रेजी के नाम इंडिया को समाप्त किया जाना चाहिए।
हिंदी भवन समिति की तरफ से हिंदी दिवस समारोह एवं कवि सम्मेलन की अध्यक्षता करते हुए उन्होंने कहा कि हिंदी के प्रचार प्सार के लिए सामूहिक रूप से प्रयत्न किए जाने चाहिए। उन्होंने इस बात पर अफसोस जताया कि आजादी के 75 साल बाद भी भारत को सिर्फ उसके ही हिंदी
नाम भारत से नहीं जाना जाता बल्कि अंग्रेजी का नाम इंडिया भी साथ में चलाया जा रहा है। उन्होंने कहा कि इसे दूर किया जाना चाहिए भारत का सिर्फ एक नाम भारत ही होना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि नए आंकड़ों के मुताबिक दुनिया में सबसे ज्यादा लोग हिंदी को बोलते हैं, ना कि इंग्लिश या चाइनीज को।
विशेष अतिथि केंद्रीय हिंदी विज्ञान मंडल के उपाध्यक्ष डॉ अनिल शर्मा जोशी ने कहा कि मैकाले की शिक्षा पद्धति को एक साजिश के तहत रखा गया ताकि अंग्रेज तो बेशक चले जाएं लेकिन अंग्रेजियत बनी रहे। उन्होंने कहा कि हिंदी के प्रचार-प्रसार और उत्थान के लिए सिर्फ सरकारी प्रयासों के भरोसे न रहें बल्कि स्वयं भी हिंदी के प्रचार-प्रसार के लिए कार्य करें।
मुख्य वक्ता अलका सिन्हा ने कहा कि हिंदी के लिए बहुत बात की जाती है, बहुत काम किए जाने के दावे भी किए जाते हैं और काम होता भी है लेकिन क्या कारण हैं कि परिणाम वैसे नहीं आ पा रहे जैसे आने चाहिए? इस पर सभी को विचार करना चाहिए। विशेष अतिथि डॉ प्रवीण शुक्ल ने कहा कि हिंदी के सम्मान और प्यार में जितना काम गाजियाबाद में हो रहा है, उससे पूरे देश को प्रेरणा लेनी चाहिए। सुप्रसिद्ध कवि बलवीर सिंह करुणा कहा कि हमारे पूर्वज हमसे ज्यादा समझदार थे। अलवर नरेश ने 1960 में हिंदी को राजभाषा घोषित कर दिया था।
इस अवसर पर विशाल हिंदी कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया जिस का संचालन कवि राज कौशिक ने किया
डाॅ प्रवीण शुक्ल की पंक्तियां बहुत पसंद की गई-
जाने कितने अनुभवों का है यही बस सार अंतिम
तोड़ना मत मन के रिश्तों का कभी भी तार अंतिम
ज़िन्दगी की उलझनों से जूझ के जाना ये मैंने
ना कोई भी जीत अंतिम ना कोई भी हार अंतिम
शायद राज कौशिक को इन शेरों पर खूब दाद मिली-
अगर नाचूं नहीं तो पांव मेरे रूठ जाते हैं
अगर नाचूं ज़रा खुल कर तो घुंघरू टूट जाते हैं
जमाने की अदाएं देखकर ये सोचता हूं मैं
वहां सच क्यों नहीं जाते जहां तक झूठ जाते हैं
कवयित्री अलका सिन्हा इन पंक्तियों पर तालियां बटोरी
और हां, अपनी भाषा को प्यार करना
बोलना अपनी मादरे जुबान भी
भरती है मुझे मुहोब्बत के अहसास से।
सुनो, बंदगी से कम नहीं होती है सच्ची आशिकी
धर्म और मजहब से ऊपर होती है, मिट्टी से मुहोब्बत
मंत्र और अजान से बढ़कर होता है देशभक्ति का गान।
कभी चेतन आनंद की यह पंक्तियां सराही गई-
हमारे प्यार के व्यवहार की पहचान है हिंदी
हमारे देश के सम्मान का सम्मान है हिंदी।
हमारी देशभाषा है, इसे दिल ।इन बसाओ तुम,
गुणों की खान है हिंदी, नया विज्ञान है हिंदी।
डॉक्टर माला कपूर गौहर की ये पंक्तियां पसंद की गई।
धरा से गगन तक है हिन्दी की धूमें
अधर इसके शब्दों को झुक झुक के चूमें
है माँ भारती के ये मस्तक की बिंदी
जो भाषाओं में सबसे सुन्दर है हिन्दी
अन्जू जैन के गीत भी बहुत सराहे गए।
इस मौके पर सौ से अधिक हिंदी विषय के मेधावी छात्र-छात्राओं और शिक्षक शिक्षकों को सम्मानित भी किया गया सम्मान समारोह का संचालन पूनम शर्मा ने किया हिंदी भवन समिति के अध्यक्ष ललित जायसवाल और महासचिव सुभाष गर्ग ने सभी अतिथियों का स्वागत किया।
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