Ghaziabad : पानी की शुद्धता को टोटल डिसाल्व्ड सॉलिडस (टीडीएस) में मापते हैं। एक रिपोर्ट में ब्यूरो ऑफ़ इंडियन स्टैण्डर्ड्स के मुताबिक अगर एक लीटर पानी में टीडीएस यानी टोटल डिसाल्व्ड सॉलिडस की मात्रा 500 मिलीग्राम से कम है तो ये पानी पीने योग्य है। लेकिन ये मात्रा 250 मिलीग्राम से कम नहीं होनी चाहिए क्योंकि, इससे पानी में मौजूद खनिज आपके शरीर में नहीं पहुंच पाते।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक प्रति लीटर पानी में टीडीएस की मात्रा 300 मिलीग्राम से कम होनी चाहिए। अगर एक लीटर पानी में 300 मिलीग्राम से 600 मिलीग्राम तक टीडीएस हो तो उसे पीने योग्य माना जाता है। हालांकि अगर एक लीटर पानी में टीडीएस की मात्रा 900 मिलीग्राम से ज्यादा है तो वो पानी पीने योग्य नहीं माना जाता है। मांग के अनुसार उपयुक्त विकल्प बनाने के लिए, आरओ वाटर प्यूरीफायर मापने वाली इकाई के संदर्भ में आते हैं जो कि एलपीएच या लीटर प्रति घंटा है, जिसका सीधा सा मतलब है कि कितने लीटर कच्चा पानी आर ओ वाटर प्यूरीफायर को शुद्ध कर सकता है। ये आरओ मशीन खासतौर पर उन इलाकों के लिए बढ़िया है जहां टीडीएस लेवल 800 से भी हाई रहता है।
बता दे आर ओ प्लांट 500 एलपीएच इंडस्ट्रियल आरओ प्लांट वाटर प्यूरीफायर सिस्टम, 500 एलपीएच पानी प्रति घंटा के हिसाब से होता है। उसी प्रकार 500,1000, 2000. एलपीएच इंडस्ट्रियल आरओ प्लांट सिस्टम प्रति घंटा पॉवर के हिसाब से आर पी एम कार्य करते हुए पानी को टंकी में स्टोर करते है। मतलब साफ है की संचालक जितना पानी एलपीएच पॉवर मशीन प्रयोग में लायेगा, वह उतना पानी एलपीएच पॉवर अनुसार के हिसाब से कम या ज्यादा स्टोर करेगा। मान लीजिये प्रोफेशनल प्लांट की शुरआत 500 एलपीएच पॉवर मशीन से होती है, 500 एलपीएच के एक आरओ प्लांट 20 हजार लीटर पानी एक दिन में संचालक स्टोर करता है तो समझ लीजियेगा, करीब दुगना पानी 40 हजार लीटर पानी आरओ प्लांट के एग्जिट नौज़्ज़ेल पॉइंट द्वारा बाहर निकलता है, ऐसे सोचेंगे तो पता चलता है की एक हजार एलपीएच पॉवर मशीन से 40 हजार लीटर पानी स्टोर में 80 हजार लीटर पानी एग्जिट पॉइंट से खराब हुआ। 2 हजार एलपीएच से इंडस्ट्रियल क्षेत्र में कितना अधिकतम पानी आरओ प्लांटों द्वारा नालो में बहाया जाता होगा, अब आप खुद अनुमान लगा लीजिये। तब हमने जाना की जिले भर में दो हजार छोटे-बड़े आरओ प्लांट है दो हजार के हिसाब से 1 दिन में अरबों लीटर पानी नालियों में वहा दिया जाता है। अब बात करते है की पानी खराब हुआ ऐसा हम क्यों बोल रहे है? क्यों की अबैध आरओ प्लांटो के पास कोई भी मानक पुरे नहीं होते ( मानक परिचालन प्रक्रिया के अंतर्गत ) ना ही फ़ूड डिपार्टमेंट का कोई लाइसेंस होता है की कितना पानी प्यूरीफायर है? ना ही भू-गर्भ जल विभाग द्वारा कोई एन.ओ.सी. दिया जाता है। कारणवश उत्तर प्रदेश अधिनियम लखनऊ 7 अगस्त 2019 एक्ट अनुसार एन.ओ.सी. का प्रावधान नहीं है। अबैध आरओ प्लांट संचालक अच्छे से जानकारी रखते है की हमारा आरओ प्लांट अबैध है और 2019 एक्ट के अनुसार प्रशासन द्वारा कभी भी सील,चलान एवं मानक परिचालन आदि की प्रक्रिया हों सकती है। उसके अनुसार अबैध आरओ प्लांट के संचालक हार्वेस्टिंग बोरिंग सिस्टम भी नहीं कराते जिससे विकल्प के रूप में आरओ प्लांट का प्रयोग ना होने वाला पानी धरातल में हार्वेस्टिंग द्वारा चला जाता है। संचालक हार्वेस्टिंग बोरिंग का खर्चा भी बचाते है। परन्तु संचालक यह कभी नहीं सोचता की भू-जल दोहन के व्यवसाय करके पैसा तो कमा लिया जाये, परन्तु ज़मीन खोखला करते हुए हम जिले का भू-जलस्तर तेजी से घटा रहे हैं। रविंद्र आर्य का कहना है की प्रकृति के प्रति मनुष्य की सोच बहुत धीमी हों चली है, हाली मे पृथ्वी पर करोना के प्रकोप से मनुष्य ने कोई प्रेरणा हासिल नहीं किया। उदारहण तोर पर "भू-जल दोहन कर भू-जलस्तर कम करके मनुष्य अपने पैर पर खुद कुल्हाड़ी मार रहा है"।
उत्तरप्रदेश के गाजियाबाद जिले का उदहारण देते हुए अवैध रूप से भू-गर्भ जल-दोहन करने वाले प्लांटों को सील करने की जिम्मेदारी जिले में भू-गर्भ जल विभाग या लघु सिचाई विभाग को जिम्मा सौपा गया है, फिर भी चल रहे 2 हजार अबैध प्लांट, अनुमानित 20 से 25 लाख लोग 20 लीटर की बोतल में बिकने वाला पानी बिना मानक के पीते हैं जिले में, 20 से 25 रुपये तक में बिकती है 20 लीटर की पानी की बोतल, शहर और आसपास क्षेत्र में 2 हजार से अधिक छोटे-बड़े अवैध आर ओ प्लांट चल रहे हैं इस वक्त, मात्र तीन अबैध आरओ प्लांट लघु सिचाई विभाग ने किए थे सील, भू-जल दोहन उत्तर प्रदेश का अधिनियम 2019 एक्ट के अनुसार कुछ समय पहले स्थानीय शिकायतकर्ता के दबाब में ट्रांस हिंण्डन के ब्रिज विहार में किये गए थे सील और जिसमे 3 व्यक्तियों पर पांच-पांच लाख का भारी जुर्माना सीडीओ विक्रमादित्य आदेशानुसार हुआ था।
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