मै सलोने बचपन मे था,
बेफिक्र जीवन मे था,
एक दिन जवानी ने,
उस प्रेम दीवानी ने,
देखकर उसको मैं इठलाया,
स्वागत कर अंदर उसे बुलाया,
उसके साथ क्या मस्ती थी,
वो क्या मेरी हस्ती थी,
हुआ जब पचपन का,
जवानी संग थे मेरे ठाठ,
बैठा लेकर उसका हाथ मे हाथ,,,
किसी ने द्वार खटखटाया,
मैं दौड़ा दौड़ा आया,,
बाबा आप कौन हो,
क्यूँ इतना मौन हो,,,
बेटा मैं हूँ बुढ़ापा,,,
बेटा इसको जाने दो,,,
मुझको अंदर आने दो,,,,
मैं घबराया, गिड़गिड़ाया,
उनके पैरो लगाकर हाथ,
बाबा ओर रहना दो इसके साथ,,
तब तक तो बाबा अन्दर आ,
मांग रहे थे पानी,
जा चुकी थी जवानी,,
अब बुढ़ापे के साथ,
कोशिश खुश रहने की है,
हिम्मत नहीं कुछ कहने की है,
दुख सुख सब सहने की है,
भोर में फिर एक दिन,,
द्वार से आई आवाज,
मैं हूँ यमराज,
बेटा जल्दी खोलो द्वार,
बचपन,जवानी,बुढ़ापे में,
किया कैसा व्यवहार,,,
किस किस को दुत्कारा,
किस किस से किया प्यार,,,
कितना झूठ, कितना फरेब,
कितनों का तोड़ा एतबार,,
लेकर सब बही खाता,
हिसाब सब देने आया हूँ,
जल्दी कर बेटा,
चल तुझको लेने आया हूँ।।
चल तुझको लेने आया हूँ। ।।।
लेखक
नरेंद्र राठी
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