सबके नेताजी
Ghazibad: विरोधियों की अपने चरखा दाव से परास्त करने वाले नेता जी आज एक व्योम छोड़ कर चले गए, भारत में नेताजी नाम की प्रसिद्धि केवल दो लोगों को मिली, पहली नेताजी सुभाष चंद्र बोस और दूसरी नेताजी मुलायम सिंह, भारत की राजनीति में ऐसे कम लोग होंगे जो अपने विपक्षियों को भी अपने साथ लाने में कामयाब हुए, मुलायम सिंह जी की ये खासियत उन्हें अलग बनाती थी, अटल बिहारी वाजपेई से लेकर कल्याण सिंह तक अपने धुर विरोधियों के साथ भी नेताजी के व्यक्तिगत संबंध बहुत मधुर रहे, वे चाहे वर्तमान प्रधानमंत्री हो या राजनाथ सिंह या बहन मायावती, सबके साथ नेताजी का एक अलग सम्मान वाला रिश्ता बना रहा, आज की राजनीति में इसकी झलक नहीं दिखती,
नेताजी का जीवन उतार-चढ़ाव वाला रहा, अपना पहला चुनाव लड़ते वक़्त उनके पास चुनाव के लिए धन नहीं था, तो क्षेत्र के सभी लोगों ने उन्हें चंदा देकर चुनाव लड़ाया यहीं से नेताजी की चुनावी यात्रा शुरू हुई,
नेताजी जब अपना पहला चुनाव जीते तो उस क्षेत्र के सभी जातियों के लोगों ने उनका समर्थन किया व उन्हें जिताया, यही वो बात नेताजी के पूरे राजनीतिक जीवन में दिखाई पड़ती है, हालांकि कुछ लोग उन्हें वर्ण विशेष का नेता मानते हैं लेकिन नेताजी को करीब से जानने वाले लोग जानते हैं कि नेता जी ने कभी वर्ण या जाति की राजनीति नहीं की, इसका उदाहरण 1992 में अपनी बनाई पार्टी समाजवादी में भी देखा जा सकता है, जिसमें समय-समय पर आजम खान, बेनी प्रसाद वर्मा, जनेश्वर मिश्र, रामशरण दास आदि प्रमुख रहे, बाद में पार्टी में अमर सिंह, रेवती रमण, फूलन देवी जैसे नाम भी जुड़े ये जरूर है कि नेताजी क्योंकि गांव की पृष्ठभूमि से थे तो उनमें ग्रामीण पिछड़ी जातियों की अधिकता जरूर रही, लोहिया, जयप्रकाश व चौधरी चरण सिंह को उन्होंने अपना आदर्श हमेशा माना,
नेताजी कि जीवन की कई ऐसी घटनाएं हैं जो उनको सब से अलग करती है जैसे अपने शुरुआती समय, उनकी कई लोगों से दुश्मनी हो गई जिसके कारण एक बार वो जीप से कहीं जा रहे थे तो कई लोगों ने उन पर बम से हमला कर दिया, जिसके कारण उनकी जीप पलट गई हमलावर उनकी हत्या करना चाहते थे तभी नेता जी ने अपने साथ वाले लोगों से कहां कि जोर से चिल्लाओ कि नेता जी मर गए, उनके साथियों ने जोर-जोर से चिल्लाना शुरू कर दिया कि नेता जी मर गए जिस कारण हमलावरों को लगा की उनका काम हो गया, और वे लोग भाग गए ये उनकी प्रेजेंस ऑफ माइंड को दर्शाता है, कैसे वो ऐसे समय में भी बच गए, विपरीत परिस्थितियों में भी नेताजी अपना रास्ता निकाल लेते थे, संभल के चुनाव के दौरान जो विपक्षी उन्हें हारा हुआ मान रहे थे तो अचानक उत्तर प्रदेश में एक दिन की सरकार बनी और संभल का चुनाव पलट गया,
नेताजी की दूसरी खूबियों के साथ अपने कार्यकर्ता का साथ हमेशा देना भी उनको लोकप्रिय बनाती है थी उनकी याददाश्त इतनी जबरदस्त थी कि किसी व्यक्ति से एक बार मिलते ही उसका नाम उन्हें याद हो जाता था और अगली बार जब उसे नाम लेकर बुलाते लोग उनसे जुड़ जाते थे, चुनाव प्रचार के दौरान जब वो हेलीकॉप्टर से निकलते थे तो ऊपर से ही क्षेत्र के विधानसभा में कितने कितने वोट हैं ये बता देते थे
उनसे मिलने जाने वाले लोग जब उनसे समय मांगते तो उन्हें आश्चर्य होता जब वो दिसंबर में कड़क ठंड में भी सुबह 5 बजे का समय देते थे देर से कहने पर उन्हें 6 बजे का टाइम दे देते थे क्योंकि वह स्वयं 4 बजे उठ जाते थे,
रक्षा मंत्री रहते हुए उन्होंने अपने सैनिकों को कई किलोमीटर चीन की सीमा में जाने की छूट भी दी और सैनिकों के शव पहले बॉर्डर पर जला दिए जाते थे, उनको भी उन्होंने बंद कर प्रत्येक सैनिक का शव उनके घर तक पहुंचाने का ऐतिहासिक फैसला अपने कार्यकाल में लिया, नेताजी का व्यक्तित्व ऐसा था कि वो हमेशा अपने विरोधियों को चकित करते परंतु कभी भी व्यक्तिगत विरोध उन्होंने किसी का नहीं किया।
लेखक: सिकंदर यादव
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