ghazibad: काल भैरव जयंती के पावन अवसर पर सिद्धपीठ श्री दूधेश्वर नाथ महादेव मठ मन्दिर की शाखा काल भैरव मन्दिर सेंटिंग लाईन प्रेम नगर गाजियाबाद में प्रातः काल काल भैरव मन्दिर के महन्त कन्हैया गिरि जी ने काल भैरव जी का अभिषेक किया तदोपरान्त नगर भ्रमण काल भैरव पंखा शोभायात्रा निकाली तत्पश्चात भण्डारे का आयोजन किया कार्यक्रम पूज्य गुरुदेव श्रीमहन्त नारायण गिरि जी महाराज श्री दूधेश्वर पीठाधीश्वर गाजियाबाद अन्तर्राष्ट्रीय प्रवक्ता श्रीपंचदशनाम जूना अखाड़ा के सानिध्य एवं अध्यक्षता में महन्त कन्हैया गिरि जी ,महन्त गिरिशानन्द गिरि जी देवी मन्दिर दिल्ली गेट,महन्त विजय गिरि जी शिव मन्दिर पटेल नगर, साध्वी महन्त कैलाश गिरि जी हरनन्देश्वर महाकालेश्वर मन्दिर मोक्षधाम हिन्डन,श्री रमेश गिरि जी ,एवं अन्य सन्तों ने अभिषेक एवं शोभायात्रा का नेतृत्व किया जिसमें भक्तों ने भाग लेकर दर्शन किया ,काल भैरव जी को काशी का कोतवाल कहते हैं वैसे ही गाजियाबाद में सिद्ध पीठ श्री दूधेश्वर नाथ महादेव के कोतवाल के रूप में काल भैरव जी विराजमान हैं शक्ति स्वरूपा मां बाला त्रिपुरा सुन्दरी देवी दिल्ली गेट मे विराजमान हैं संकटमोचन हनुमान जी महाराज अग्रसेन बाजार चौपला में विराजमान हैं ,जिसमें सैकड़ों सन्तों भक्तों ने भाग लिया आज पूज्य गुरुदेव के अध्यक्षता में काल भैरव जयंती धूम धाम से मनाई गई।
शिवपुराण’ के अनुसार अगहन मास के कृष्णपक्ष की अष्टमी को मध्यान्ह में भगवान शंकर के अंश से भैरव की उत्पत्ति हुई थी, अतः इस तिथि को भैरवाष्टमी के नाम से भी जाना जाता है। पौराणिक आख्यानों के अनुसार अंधकासुर नामक दैत्य अपने कृत्यों से अनीति व अत्याचार की सीमाएं पार कर रहा था, यहाँ तक कि एक बार घमंड में चूर होकर वह भगवान शिव तक के ऊपर आक्रमण करने का दुस्साहस कर बैठा. तब उसके संहार के लिए शिव के रुधिर से भैरव की उत्पत्ति हुई।
कुछ पुराणों के अनुसार शिव के अपमान-स्वरूप भैरव की उत्पत्ति हुई थी। यह सृष्टि के प्रारंभकाल की बात है। सृष्टिकर्ता ब्रह्मा ने भगवान शंकर की वेशभूषा और उनके गणों की रूपसज्जा देख कर शिव को तिरस्कारयुक्त वचन कहे। अपने इस अपमान पर स्वयं शिव ने तो कोई ध्यान नहीं दिया, किन्तु उनके शरीर से उसी समय क्रोध से कम्पायमान और विशाल दण्डधारी एक प्रचण्डकाय काया प्रकट हुई और वह ब्रह्मा का संहार करने के लिये आगे बढ़ आयी। ब्रम्हा तो यह देख कर भय से चीख पड़े। शंकर द्वारा मध्यस्थता करने पर ही वह काया शांत हो सकी। रूद्र के शरीर से उत्पन्न उसी काया को महाभैरव का नाम मिला। बाद में शिव ने उसे अपनी पुरी, काशी का नगरपाल नियुक्त कर दिया। ऐसा कहा गया है कि भगवान शंकर ने इसी अष्टमी को ब्रह्मा के अहंकार को नष्ट किया था, इसलिए यह दिन भैरव अष्टमी व्रत के रूप में मनाया जाने लगा। भैरव अष्टमी 'काल' का स्मरण कराती है, इसलिए मृत्यु के भय के निवारण हेतु बहुत से लोग भैरव की उपासना करते हैं। भैरव की पत्नी देवी पार्वती की अवतार हैं जिनका नाम भैरवी है जब भगवान शिव ने अपने अंश से भैरव को प्रकट किया था तब उन्होंने माँ पार्वती से भी एक शक्ति उत्पन्न करने को कहा जो भैरव की पत्नी होंगी तब माँ पार्वती ने अपने अंश से देवी भैरवी को प्रकट किया जो शिव के अवतार भैरव की पत्नी हैं
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