जो प्रकृति सम्मत उचित नव वर्ष था,
खो गया वह वक्त अप्रिल फूल में।
हम विदेशी सभ्यता में डूबकर,
खोजते हैं फूल, कैक्टस शूल में।
ज्ञान गिरवी रख दिए परदेस को,
ढूँढ़ते हैं नर्सरी स्कूल में।
सप्त सागर में बहा अपनी विरासत,
खोज करते लोग स्वीमिंग पूल में।
शर्म भी आती नहीं अब तो अवध,
क्या मिला, क्या खो गया,इस भूल में।
डॉ अवधेश कुमार अवध
साहित्यकार व अभियंता
संपर्क - 8787573644
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