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बात की बात डॉ अवधेश कुमार अवध

बात की बात डॉ अवधेश कुमार अवध 

चलो, आज तुम्हारी बात मान लेता हूँ।

सच्ची! कौन सी?
वही, कल वाली।

उफ्फ, याद नहीं आ रही।

वही जिसके लिए तुमने आसमान सर पर उठा लिया था।

धरती-पाताल छान मारा पर याद नहीं आ रही।

सुनो, मैंने बहुत मुश्किल से खुद को तैयार किया है।

ओके बाबा, अब तुम ही बता दो न।

मुझे भी याद नहीं।

हाँ हाँ, तुम्हें क्यों याद रहेगी मेरी बात!

तुम्हें ही कौन सी याद है।

देखो, गुस्सा मत दिलाओ वरना बात बढ़ जाएगी।

मुझे परवाह नहीं।

तुम्हें मेरी परवाह थी ही कब!

थी, अब भी है....।

चल झूठे।

तू झूठी, तेरा .....

देखो, मेरे खानदान पर मत जाओ वरना....

वरना क्या?

रुको, रुको, रुको, वो बात याद आ गई।

मुझे क्या?

तुमने वादा किया था

कब? मुझे याद नहीं

मैं बताती हूँ, बात ये है कि....

शटअप।

यू शटअप।

हाय रब्बा, यह आदमी मेरी एक भी बात नहीं सुनता।

एक सुना......।

सुन..............।

हाँ तो बात ये है कि.....।

नहीं, बात ये थी कि.......।


डॉ अवधेश कुमार अवध
साहित्यकार व अभियंता

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