भूखे आकर, गाली खाकर।
खून जलाकर, स्वेद बहाकर।।
रोटी - भात जुटाऊँ।
मैं बटर कहाँ से लाऊँ!
दिनभर खटकर, पल पल मरकर।
विपदा सहकर, रोकर - हँसकर।।
रूखा - सूखा खाऊँ।
सर की चाहत, दारू की लत।
गंदी आदत, मिले न राहत।।
कैसे उन्हें मनाऊँ?
मैं बटर कहाँ से लाऊँ!
टूटी पायल, चिथड़ा आँचल।
मन भी घायल, महँगा ऑयल।।
खाऊँ या कि लगाऊँ?
मैं बटर कहाँ से लाऊँ!
दिन को रातें, उल्टी बातें।
नकली खाते, चालें - घातें।।
देखूँ, चुप रह जाऊँ?
मैं बटर कहाँ से लाऊँ!
जा रे जा जा, सबका खा जा।
सच, झुठला जा, बन जा राजा।।
अवध न शीश झुकाऊँ।
मैं बटर कहाँ से लाऊँ!
डॉ अवधेश कुमार अवध
संपर्क 8787573644
awadhesh.gvil@gmail.com
0 टिप्पणियाँ