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मैं विश्वनाथ का नंदी हूँ

मैं विश्वनाथ का नंदी हूँ, दे दो मेरा अधिकार मुझे।
वापी में हैं मेरे बाबा, कर दो सम्मुख-साकार मुझे।।
अब तो जागो हे सनातनी, डम- डमडम डमरू बोल रहा।
न्यायालय आकर वापी में, इतिहास पुराने खोल रहा।।
अब बहुत छुप चुके हे बाबा, करने दो जय-जयकार मुझे।

एक विदेशी खानदान ने, मंदिर को नापाक किया था।
मूल निवासी सनातनी के, काट कलेजा चाक किया था।।
औरंगजेब नाम था उसका, वह धर्मांध विनाशक था।
भारत माता के आँचल का, वह कपूत था,नाशक था।।
आस्तीन में साँप पले थे, बहु बार मिली थी हार मुझे।

ले रहा समय अब अँगड़ाई, खुल रहे नयन सुविचार करो।
बहुत सो चुके हे मनु वंशज, उठ पुनः नया उपचार करो।।
लख रहा दूर से बेसुध मैं, वर्षों से बाबा दिखे नहीं।
मैं अपलक चक्षु निहार रहा, विधि भी आकर कुछ लिखे नहीं।।
अवध अहिल्या भक्तिन जैसा, दिख नहीं रहा अवतार मुझे।


डॉ अवधेश कुमार अवध
साहित्यकार व अभियंता
संपर्क 8787573644

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