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होली को कायम रक्खेंगे,, खेलेंगे हम रंग।गाल फुलाओ,हाथ छुड़ाओ, चाहे कर लो जंग: डॉ अवधेश कुमार अवध

Ghaziabad : होली में हो ली, वह समय दूर नहीं जब तथाकथित स्त्री-विमर्श संगठन होलिका दहन का विरोध करने लगेंगे। इसे नारी जाति का शोषण कहने लगेंगे। जल-हानि की दुहाई तो वर्षों से दी ही जा रही है। त्वचा-जलन की दलील को छानने से दिल जलने की खूब बू आती है। पर्यावरण प्रेमियों को होलिका जलने में किसी भी कोक फैक्ट्री से अधिक जहरीले कॉर्बन मोनो ऑक्साइड का दीदार होता ही है। इसकी हुड़दंग के समक्ष मॉबलिंचिंग भी फीकी लगती है तथाकथित सेक्युलर वादियों को। मुझे लगता है कि निकट भविष्य में ही इस त्यौहार का अस्तित्व भी खतरे में पड़ेगा। होलिका समर्थकों के सम्मुख छिपना ही होगा बेचारी होली को। हाय री होली! फिर भी इससे प्राप्त या प्राप्य बहुमुखी आनंद का कोई सानी नहीं। उम्र के अंतराल को, रिश्तों के जाल को, बिनु पातों की डाल को, गिरगिट जैसी खाल को, दिलों में कायम मलाल को, सहमी हुई चाल को, फीके पड़ते गुलाल को, पिचके हुए गाल को, आते-जाते साल को, गुम हो चुके धमाल को, मायका एवं ससुराल को एक बार रिचार्ज तो कर ही देती है होली। जय हो होली! आप सभी को पावन होली की शुभकामनाएँ*

डॉ अवधेश कुमार अवध
8787573644

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