Ghaziabad :विश्व ब्रह्मर्षि ब्राह्मण महासभा के संस्थापक अध्यक्ष ब्रह्मर्षि विभूति बी के शर्मा हनुमान ने पुलिस मुठभेड़ में वांछित अपराधियों को मार गिराने वाली एसटीएफ टीम को बधाई बहुत-बहुत साधुवाद डेढ़ माह पहले प्रयागराज में वकील उमेश पाल समेत दो पुलिस कर्मियों को निशाना बनाने वाले माफिया सरगना अतीक अहमद के दो गुगों की झांसी में एक मुठभेड़ में मौत उत्तर प्रदेश पुलिस की एक बड़ी. सफलता है। इस मुठभेड़ में अतीक के बेटे असद के साथ शूटर गुलाम मुहम्मद भी पुलिस की गोलियों का निशाना बना। चूंकि ये दोनों उमेश पाल की हत्या के समय कैमरे में कैद हुए थे, इसलिए उनके अपराध और उनकी पहचान को लेकर कोई सवाल नहीं उठ सकता। उनके दुस्साहस का अनुमान इससे लगाया जा सकता है कि उन्होंने उमेश पाल हत्याकांड को अंजाम देते समय अपने चेहरे भी छिपाने की जहमत नहीं उठाई थी। इसका कोई कारण हो सकता है तो यही कि वे खौफ पैदा करना चाहते थे। उत्तर प्रदेश पुलिस और विशेष रूप से उसकी स्पेशल टास्क फोर्स उमेश पाल और दो पुलिस कर्मियों की हत्या में शामिल अपराधियों की जोर-शोर से तलाश कर रही थी, लेकिन वे पुलिस अथवा अदालत के समक्ष समर्पण करने के बजाय बचते फिर रहे थे। आम तौर पर इन स्थितियों में ऐसे दुस्साहसिक अपराधी मुठभेड़ का ही निशाना बनते हैं। असद और गुलाम के साथ ऐसा ही हुआ। उम्मीद की जाती है कि उनके ऐसे हश्र के बाद उमेश पाल हत्याकांड में शामिल अन्य अपराधी पुलिस के समक्ष समर्पण करना पसंद करेंगे। जो भी हो, झांसी में हुई मुठभेड़ के बाद विपक्षी दलों के कुछ नेता जिस तरह दुर्दात अपराधियों की मौत पर द्रवित हो रहे हैं और पुलिस पर सवाल उठाने में लगे हुए हैं, वह न केवल हास्यास्पद है, बल्कि दुर्भाग्यपूर्ण भी।
आखिर इतने खूंखार हत्यारों के प्रति आंसू क्यों बहाए जा रहे हैं? जब पुलिस का मनोबल बढ़ाने का काम किया जाना चाहिए, तब उसे कठघरे में खड़ा किया जा रहा है। यह केवल सस्ती राजनीति ही नहीं, बल्कि अपराधियों के प्रति अनावश्यक हमदर्दी भी है। ऐसी क्षुद्र राजनीति की कहीं कोई आवश्यकता नहीं। इससे विचित्र और आपत्तिजनक और कुछ नहीं हो सकता कि सपा प्रमुख अखिलेश यादव आनन-फानन इस नतीजे पर पहुंच गए कि झांसी में हुई मुठभेड़ फर्जी है। आखिर उन्हें कैसे पता चला? क्या वह घटनास्थल पर उपस्थित थे ? अखिलेश की तरह बसपा प्रमुख मायावती भी मुठभेड़ पर सवाल उठा रही हैं। यही हाल असदुद्दीन ओवैसी और तृणमूल कांग्रेस की नेता महुआ मोइत्रा का भी है। उनके बेजा सवाल यही बयान कर रहे हैं कि वे दुर्दात अपराधियों में भी जाति-मजहब खोज रहे हैं। ऐसे नेता एक ओर यह कहते नहीं थकते कि अपराधी की न तो कोई जाति होती है और न ही कोई मजहब, लेकिन असद और गुलाम में उन्हें यही दिख रहा है। जो भी नेता झांसी में हुई मुठभेड़ पर सवाल उठा रहे हैं, वे इतने नादान नहीं हो सकते कि यह न जानते हों कि हर पुलिस मुठभेड़ की कई स्तरों पर जांच होती है।
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