Ghaziabad : विश्व ब्रह्मर्षि ब्राह्मण महासभा के संस्थापक अध्यक्ष ब्रह्मर्षि विभूति बी के शर्मा हनुमान ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट में इस समय समलैंगिक विवाह को मान्यता देने के बारे में सुनवाई चल रही है। इस विषय के पक्ष में दलील हैं कि समलैंगिक लोगों को विवाह का अधिकार नहीं देना समानता के अधिकार का उल्लंघन है। विशेष विवाह अधिनियम, 1954 के अंतर्गत केवल महिला और पुरुष के एक-दूसरे से विवाह करने की स्वीकार्यता का प्रविधान है। मामले को कोर्ट में ले जाने वालों की दलील है कि इस प्रविधान को जेंडर न्यूट्रल होना चाहिए। कौन किससे शादी करेगा, यह उसका निर्णय है और उसे इसका अधिकार होना चाहिए। दूसरी ओर, केंद्र सरकार का स्पष्ट कहना है कि ऐसा कोई अधिकार उसे विवाह की परिभाषा बदलने के लिए बाध्य नहीं कर सकता है। इस तरह की शादी को मान्यता दी गई तो समाज पर दुष्प्रभाव पड़ेगा। इससे कई अन्य कानूनों के प्रविधान भी प्रभावित होंगे। सरकार के साथ ही समाज में भी बड़ा वर्ग है जो इस तरह के विवाह को मान्यता दिए जाने का विरोध कर रहा है। लगभग सभी का तर्क यही है कि इससे समाज में परिवार नाम की संस्था के अस्तित्व पर संकट आएगा। समाज का ढांचा प्रभावित होगा। बीके शर्मा हनुमान का कहना है कि धार्मिक और सांस्कृतिक आधार पर भी समलैंगिक विवाह को स्वीकार्यता मिलना संभव नहीं है। अदालत में सुनवाई के साथ ही कई समूहों ने इसका विरोध करना भी शुरू कर दिया है। ऐसे में समलैंगिक विवाह को मान्यता देने की स्थिति में आने वाले वैधानिक संकट और समाज पर इससे पड़ने वाले प्रभावों की पड़ताल हम सभी के लिए बड़ा मुद्दा है। विवाह की जो अवधारणा है, उसके अंतर्गत एक पुरुष और स्त्री के बीच विवाह संपन्न होता है. यह सर्वमान्य परंपरा में धर्म कर्तव्य के रूप में रति सुख और इसी के प्रतिफल के रूप में जैविक संतान की प्राप्ति होती हैl इस विषय में भारतीय समाज और कानून में लैंगिक आधार पर रुख स्पष्ट है
समलैंगिक विवाह अप्राकृतिक, अनैतिक व सामाजिक नियमों के विरुद्ध है। इससे सृष्टि की संरचना को आगे बढ़ाने की सहज प्रक्रिया में भी बाधा पड़ती है। भारतीय संस्कृति, प्रकृति व समाज के विरुद्ध समलैंगिक विवाहों को कानूनी मान्यता देने से सामाजिक ढांचे को होने वाली क्षति की पूर्ति असंभव हो जाएगी। इससे समाज को होने वाले नुकसान की भरपाई नहीं हो सकती।
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