गाजियाबाद विश्व ब्रह्मर्षि ब्राह्मण महासभा के संस्थापक अध्यक्ष ब्रह्मर्षि विभूति बीके शर्मा हनुमान ने कहा कि गाजियाबाद शहर में भगवान परशुराम भवन का होना अति आवश्यक है ब्राह्मण वर्ग तथा सभा को अपनी गतिविधियों को करने के लिए हमेशा दिक्कत का सामना करना पड़ता है
इसके लिए शहर में ब्राह्मण वर्ग के इष्ट भगवान परशुराम के नाम पर एक भवन अवश्य होना चाहिए ताकि सभा की सामाजिक व धार्मिक आयोजनों के लिए जिसका प्रयोग किया जा सके भगवान परशुराम पर प्रकाश डालते हुए बताया भगवान परशुराम ने हमेशा ही कमजोर वर्ग के उत्पीड़न और उनके साथ होने वाले अन्याय के खिलाफ लड़ाई लड़ी है। भगवान परशुराम ने कभी अन्याय सहन नहीं किया। उन्हें न्याय के देवता के रूप में जाना जाता है। भगवान शिव की उपासना करने के बाद वरदान के रूप में उन्हें फरसा मिला था। विष्णु पुराण के अनुसार, परशुराम जी का मूल नाम राम रखा गया था। लेकिन परशु धारण करने के कारण उनका नाम बदल कर परशुराम हो गया। पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान विष्णु ने परशुराम जी को त्रेता युग में रामावतार होने पर वे पृथ्वी पर वास करने का वरदान दिया था। वे तपस्या में लीन रहेंगे। इसलिए माना जाता है कि वे आज भी जीवित हैं। ऐसा माना जाता है कि त्रेता युग में भगवान श्रीराम ने उनको सुदर्शन चक्र दिया था। ताकि यही सुदर्शन चक्र वे द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण को दे सकें। फिर द्वापर युग में परशुराम जी ने श्रीकृष्ण को उनके गुरुकुल में चक्र सौप दिया। भगवान परशुराम शस्त्र विद्या में बहुत ही पारंगत थे। इतना ही नहीं उन्होंने भीष्म, द्रोष और कर्ण को तक शस्त्र विद्या दी थी। ऐसा भी कहा जाता है कि कलयुग में जब भगवान विष्णु का कल्कि अवतार होगा, तो भगवान परशुराम उनको शस्त्र विद्या का ज्ञान देंगे। इस पौराणिक कथा से सभी परिचित हैं जब एक बार परशुराम जी भगवान शिव से मिलने कैलाश पर्वत पर पहुंचे, तो गणेश जी ने उनको रोक लिया। वे उनको मिलने नहीं दे रहे थे। तब उन्होंने क्रोधित होकर गणेश जी पर परशु से वार कर दिया। जिससे गणेश जी का एक दांत टूट गया था। इसी कारण भगवान श्री गणेश एक दंत कहलाए थे। भगवान परशुराम की शक्ति भी अक्षय थी। इतना ही नहीं इनकी गिनती तो महर्षि वेदव्यास, अश्वत्थामा, राजा बलि, हनुमान, विभीषण, कृपाचार्य, ऋषि मार्कंडेय सहित उन आठ अमर किरदारों में होती है जिन्हें कालांतर तक अमर माना जाता है।
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