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भूली बिसरी यादें

   Ghaziabad : आज जब पत्रकारिता पर भांड और बिकाऊ जैसे आरोप लग रहे हैं। लगभग चार दशक पूर्व इसके विपरीत स्थिति थी। पीत पत्रकार तब भी थे लेकिन उनको तवज्जो नहीं दी जाती थी। प्रतिष्ठित समाचार पत्रों में छपे पर तुरन्त कार्यवाही होती थी। आजकल जब कुछ स्थानीय पत्रकारों को पूंजीपतियों के इर्द-गिर्द निकटता के लिए परिक्रमा करते देखा जा सकता है लेकिन पहले ऐसा नहीं था। मेरा (सुशील कुमार शर्मा, स्वतन्त्र पत्रकार)अख़बार 'युग करवट' जब साप्ताहिक था तब भी उसमें छपे पर तुरन्त कार्यवाही होती थी। एक ऐसा ही उदाहरण मोहन मीकिन के मालिक रहे कपिल मोहन से जुडा है। यह तब की बात है जब उन्हें मेजर की मानद उपाधि थी। मैं लाजपतराय महाविद्यालय साहिबाबाद अपने अखबार में छपे कालिज की वोकेशनल कोर्सेज के विज्ञापन की पेमेंट लेने गया था। कालिज का मेन गेट बंद था। किसी को अंदर जाने की इजाजत नहीं थी। मैंने खबर भिजवाई तो प्रिंसिपल बी. एस. त्यागी ने मुझे तुरंत बुला लिया।वह मेरे निवास के पास दिल्ली गेट में ही रहते थे तथा मुझसे बहुत स्नेह भी रखते थे। वहां मैंने पालिटिकल साईंस से पोस्ट ग्रेजुएट के लिए कपिल मोहन को प्रिंसिपल रूम में प्रिंसिपल द्वारा एक्जाम में खुद नकल कराते देखा । तब मैंने अपने अखबार में खबर छापी थी 'बाअदब बामुलाहिजा होशियार,मेजर कपिल मोहन एक्जाम दे रहे हैं..' । मेरे अखबार में छपने के बाद *दिनमान पत्रिका* में उस पर व्यंग्य टिप्पणी छप गयी। कपिल मोहन को लगा कि मामला कहीं बढ़ न जाए इसलिए उन्होने मुझसे मिलने के लिए मेरे पास मोहन मीकिन के जीएम गुरूशरण चौधरी के पीए कृष्ण राज त्यागी और आई. एस. निर्वाण को भेजा । फिर शहर कांग्रेस के तमाम नेताओं को भेजा। यह समय वह था जब देश में और अधिकांश प्रदेशों में भी कांग्रेस शासन था। सुरेन्द्र प्रकाश गोयल, सतीश शर्मा,चरण सिंह शांडिल्य, चौधरी धारा सिंह, कांग्रेस के शहर अध्यक्ष सरदार गुलाब सिंह आदि सभी ने प्रयास किए कि कपिल मोहन मिलना चाहते हैं, आप मिल लें। लेकिन मैंने किसी की नही मानी ,कह दिया मैं नहीं मिलूंगा। मुझ पर दवाब बनाने का किसी का साहस नहीं था। मैंने कह दिया कि आप आये हैं तो मैं आगे कपिल मोहन के विरुद्ध नहीं छापूंगा और न ही कम्पलेंट करूंगा। मैं फिर उसके बाद कभी मोहन मीकिन नहीं गया। यदि मैं कपिल मोहन का अनुरोध मान मिल लेता तो मुझे सम्भवतः आर्थिक लाभ ही मिलता। लेकिन उस समय की पत्रकारिकता की सोच आज की तरह से नहीं थी।इस उद्दहरण का उल्लेख इसीलिए कर रहा हूं। ऐसे ही अन्य उदाहरण है,जिन सुरेन्द्र प्रकाश गोयल को मैं सोते हुए उनके बैड तक से जगा कर मिल लिया करता था,जब वह विधायक और फिर सांसद बने मैं मिलने नहीं गया। मेरे अभिन्न मित्र रहे एस. के. त्रिवेदी जो लोकसभा अध्यक्ष रहे बलराम जाखड़ के करीबी थे, गाजियाबाद में डिप्टीकलेक्टर, एसडीएम, एडीएम प्रशासन व वित्त, फिर जीडीए के सचिव व उपाध्यक्ष रहे। जब वह जीडीए के उपाध्यक्ष रहे तब भी मैं उनसे मिलने नहीं गया। यह लोग अपनी व्यस्तता में भूल गये तो मैंने भी निकटता का कोई लाभ लेना उचित नहीं समझा। जबकि मेरे द्वारा उनसे परिचित कराये गये मेरे मित्रों ने उनके पद का भरपूर लाभ उठाया।
         ऐसा ही एक और प्रकरण याद आ रहा है जो चार दशक से भी पूर्व का है जब गाजियाबाद का आयकर कार्यालय अहाता भौंदू मल, जी. टी. रोड में था। वहां ए,बी,सी कैडर के तीन आयकर अधिकारी थे सिन्हा, पाण्डेय और जैन। मैंने उस समय अपने अखबार में छापा था कि गाजियाबाद के धन्नासेठों और शराब ठेकेदारों के साथ मौज मस्ती के लिए गाजियाबाद के आयकर अधिकारी दिल्ली जाते हैं। तब हमारा अखबार चौपला हनुमान मंदिर के पास पत्रकार जय प्रकाश गुप्ता ( सम्पादक-गाजियाबाद टाइम्स) की प्रेस में छपता था। जय प्रकाश गुप्ता ने जब मैं प्रूफ पढ रहा था तो देख लिया और उन्होंने अपने शुभचिंतकों उद्यमियों को खबर रूकवाने के लिए सूचना भेज दी। शराब ठेकेदार राज कुमार कोहली ,उनके साले एम. एल. चौपड़ा और पंजाब आयल एक्सपैलर के मालिक हरीश चंद्र शर्मा आदि जो मेरे पिताजी वरिष्ठ पत्रकार श्याम सुन्दर वैद्य ( तडक वैद्य) के मित्र थे, उनके पास अखबार के कार्यालय 10, लायर्स चैम्बर (तहसील के पास) पहुंचे। पिताजी ने उन्हें बताया कि मेरा बेटा अगर कोई खबर छाप रहा है तो सही होगी। मैं उससे खबर रोकने के लिए नहीं कहूंगा। अखबार में खबर छपी। बाद में राज कुमार कोहली और हरीश चंद्र शर्मा के अनुरोध पर मैं जब उनके साथ तीनों आयकर अधिकारियों से मिला तो मुझे देखकर तीनों खडे हो गए तथा अपनी सफाई देने लगे। जब आयकर कार्यालय कमला नेहरू नगर स्थानांतरित हो गया था तब भी यह तीनों वहां वरिष्ठ आयकर अधिकारी थे। तीनों स्थानांतरण के बाद आयकर आयुक्त पदों से सेवानिवृत्त हुए। मुझे याद है जब कभी मैं किसी मित्र के साथ आयकर कार्यालय जाता था तो वह तीनों अधिकारी मुझसे बहुत घबराते थे। इसी प्रकरण के बाद उस समय शहर रहीस कहे जाने वाले राजेंद्र मंगल और हरियंत चौधरी ने पिता जी से उन्हें मेरे से मिलवाने का अनुरोध किया था।राजेंद्र मंगल की कोठी चौधरी मोड पर है। वह फिल्म फाइनेंसर थे। जब उन्होंने अपनी कोठी का नवीनीकरण कराया था तो एक दिन केवल मुझे डिनर की दावत दी। उन्होंने कहा कि आज केवल तुम ही आमंत्रित अतिथि हो। उनकी पुत्रवधू पिंकी मंगल जो तीज पर्व पर डायमंड पैलेस में प्रति वर्ष वृहद "विभावरी तीज मेले" काआयोजन करती हैं, उन्होंने मुझे और अपने श्वसुर को स्वादिष्ट भोजन कराया। उनके रसोइये ने अनगिनत पकवान बनाए थे। फिर उन्होंने कोठी का पूरा अवलोकन कराया। सारी कारीगरी फिल्मों की चकाचौंध सी थी। राजेंद्र मंगल की जब दिग्गज फिल्म स्टार राजकपूर की बेटी के दिल्ली स्थित एस्कॉर्ट हास्पीटल में हार्ट सर्जरी हुई थी तो उनके परिवार के अलावा मैं और मेरे मित्र राजेंद्र शर्मा ही उनके साथ गए थे। वहीं मैंने करीब से राजकपूर के बड़े बेटे रणधीर कपूर को देखा था। जो शायद अपनी बहन रीतू नंदा से मिल कर जा रहे थे। मुझे याद है तब मेरे मुंह से अचानक निकला यह तो डब्बू है। राजेंद्र मंगल जब तक जीवित रहे अपनी कोठी के लान में शहर के गणमान्य लोगों की वर्ष में एक या दो बार दावत रखते थे। जिसमें प्रमुख अधिकारी, नेता, राजनीतिक, पत्रकार सभी होते थे। पत्रकारों में वह मुझे और तेलूराम कांबोज को ही आमंत्रित करते थे।वह मोहन मीकिन के भी डायरेक्टर रहे थे।

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