गाजियाबाद : स्व. चन्द्र भान गर्ग सर्राफ ( 1907-1981) गाजियाबाद के पहले पत्रकार थे जो 1936 में उस समय के देश के प्रमुख दो हिन्दी दैनिकों , दैनिक हिन्दुस्तान व दैनिक नवभारत टाइम्स के अलावा उर्दू के दैनिक मिलाप, दैनिक प्रताप और दैनिक तेज के भी पहले संवाददाता थे। वह स्वतंत्रता आंदोलन में 1932 से 1942 तक कई बार जेल में बंद रहे। जेल में उनसे चक्की पीसने व खाट के बान बटने का काम कराया जाता था। उनके पैरों में बेड़ियां पडी होती थी। वह आजीवन गाजियाबाद पत्रकार संघ के अध्यक्ष रहे तथा गाजियाबाद सर्राफा एसोसिएशन के अध्यक्ष व श्री कृष्ण गौशाला व गाजियाबाद वैश्य सभा के महामंत्री रहे। मेरा ( सुशील कुमार शर्मा) सौभाग्य रहा कि जब मैंने 1973 में अपनी पत्रकारिता की शुरुआत की तो उनके निधन तक मेरा और उनका लम्बा साथ रहा। वह गाजियाबाद की उस समय की एक मात्र पत्रकार संस्था गाजियाबाद पत्रकार संघ के आजीवन अध्यक्ष रहे व मैं महामंत्री रहा। हम दोनों का विजिटिंग कार्ड भी एक ही होता था। उल्लेखनीय है यही संस्था बाद में गाजियाबाद जर्नलिस्ट्स क्लब बनी जिसमें वरिष्ठ पत्रकार विजय सेखरी व तेलूराम कांबोज भी पदाधिकारी रहे। मुझे चन्द्र भान गर्ग जी के साथ गाजियाबाद जिला बनने से पूर्व मेरठ मंडलीय पत्रकार सम्मेलनों में अनेक बार जाना हुआ। जहां उस समय के दिग्गज पत्रकारों से मिलना और उन्हें सुनने का अवसर मिला ।
उनके निधन के बाद उनके सुपुत्र स्व. विधान चंद्र गर्ग (1939-2021) पन्द्रह वर्ष तक 1981-1995 तक दैनिक हिन्दुस्तान के संवाददाता रहे। वह भी गाजियाबाद सर्राफा एसोसिएशन के अध्यक्ष रहे।लेखन में निडरता और साफगोई के कारण दैनिक हिन्दुस्तान से उन्हें हटना पड़ा। लेकिन उसके बाद भी वह प्रदेश शासन से स्वतन्त्र पत्रकार के रूप में जीवनपर्यंत मान्यता प्राप्त रहे।
इस परिवार की तीसरी पीढ़ी विधान चंद्र गर्ग का मेधावी सुपुत्र स्व. संदीप गर्ग (1966-2012) का निधन अल्पायु में ही हो गया था। उसने भी पत्रकारिता में अपने परिवार का परचम कायम रखा था। वह एमएससी ( आर्गेनिक कैमिस्ट्री) था। उसे नगों और ज्योतिष की भी अच्छी जानकारी थी। तत्कालीन विधायक, सांसद और विभिन्न दलों के नेता उससे मिल कर अथवा फोन पर वार्ता कर अपनी शंकाओं का समाधान करते रहते थे तथा उसका सम्मान भी करते थे। वह भी सर्राफा एसोसिएशन का अध्यक्ष रहे । वह भी भारी मतों से विरोधी को पराजित कर। अपने अंत समय तक वह दैनिक पंजाब केसरी का ब्यूरो चीफ थे। संदीप गर्ग ने गाजियाबाद का पेज खुद बनाकर भेजने की शुरुआत की थी। संदीप गर्ग का सुपुत्र कुशाग्र गर्ग उच्च शिक्षा प्राप्त कर अपने बाबा विधान चंद्र गर्ग की लैब और उसमें बने सोने के पावडर का व्यवसाय देख रहा है। विधान चंद्र गर्ग की लैब का बना सोने का पावडर मार्केट में प्रसिद्ध रहा है तथा कई प्रदेशों के सुनारों को उसकी सप्लाई रही है।
इस परिवार के एक और शख्स चन्द्र भान गर्ग जी के छोटे भाई स्व. सूरज भान गर्ग (1925-1983) भी चन्द्र भान गर्ग जी के समय से ही अंग्रेजी अखबारों के संवाददाता रहे। वह दैनिक हिन्दुस्तान टाइम्स सहित सात अंग्रेजी अखबारों के संवाददाता रहे। 1947 में विभाजन के समय दंगे भड़कने के समय उनकी गढ़ गंगा मेले की रिपोर्टिंग पर उस समय अखबार के सम्पादक देवदास गांधी ( राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के सुपुत्र) ने उन्हें पचास रूपए का पुरस्कार दिया था। सूरज भान गर्ग अग्रसेन भवन के भी संस्थापकों में थे। उन्होंने ही इसके लिए शुरूआत की थी। वह जीवनपर्यंत श्री सुल्ला मल रामलीला कमेटी के उस्ताद और अध्यक्ष रहे। अपने समय वह इस महानगर के एक मात्र वैश्य वर्ग के दबंग नेता थे।
उल्लेखनीय है चन्द्र भान गर्ग जी के पिता स्वर्गीय दुर्गा प्रसाद "सलिल" श्री सुल्लामल रामलीला कमेटी की रामायण के रचियता थे। बताया जाता है श्री सुल्ला मल जी दृष्टिहीन थे अतः उन्होंने श्री दुर्गा प्रसाद "सलिल" जी को बोलकर यह रामायण लिखवाई थी। दुर्गा प्रसाद सलिल जी ने सर्राफा पर "आईना- ए- इल्मो हुनर सर्राफा" पुस्तक भी लिखी थी।
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