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कम मतदान सत्ता के लिए चुनौतीसिकंदर यादव, वरिष्ठ समाजसेवी

Ghaziabad : दो चरण के मतदान पूरा होने के बाद कयास लगने शुरू हो चुके हैं, सभी पक्ष अपनी-अपनी बढ़त दिखाने की कोशिश कर रहे हैं, क्योंकि दोनों चरणों में मतदान 2019 के मुकाबले 5 फीसदी से 9 फीसदी तक कम हुआ है, खासकर हिंदी भाषी राज्यों में, क्योंकि इन राज्यों में पिछली बार बीजेपी ने विपक्ष का पूरी तरह सफाया कर दिया था, लेकिन इस बार तस्वीर में थोड़ा बदलाव नजर आ रहा है, जहां मोदी जी 400 पर का नारा दे रहे थे, वहीं कम मतदान से सत्ता पक्ष का विश्वास डगमगाता दिख रहा है, हालांकि इस बात का कोई ठोस प्रमाण नहीं है कि कम मतदान से सरकारें बदल जाती हैं, कई बार ज्यादा मतदान से परिवर्तन होता है परंतु कम मतदान भी सत्ता को नुकसान पहुंचता है, यदि उसका बोटर शिथिल हो जाए तो, उत्तर प्रदेश की बात करें तो दोनों चरणों में मतदान कम रहा 2019 के मुकाबले, इसे इस प्रकार से समझ सकते हैं कि बीजेपी का अधिकतर बोटर शहरों में निवास करता है और इस बार के मतदान से एक चीज समझ में आ रही है कि ग्रामीण क्षेत्र या मुस्लिम क्षेत्रों में मत प्रतिशत ज्यादा काम नहीं हुआ, वरन वो लगभग पुराने पैर्टन पर ही जारी है, परंतु शहरी क्षेत्र में ज्यादा गिरावट है जिससे भाजपा के लिए चुनौती बन गई है क्योंकि चुनाव आयोग व सरकार की तरफ से भरसक कोशिश हुई कि मतदान ज्यादा से ज्यादा हो, परंतु दो चरणों में ऐसा नहीं हो रहा, जहां तक लोगों की बात है तो आज रोजगार व महंगाई मंदिर से बड़े मुद्दे बनाकर उभरे हैं जिससे लोगों में सत्ता की तरफ उदासीनता का भाव दिखाई देता है, ऐसी सीटें जिन्हें भाजपा ने पिछली बार बड़े अंतर से जीता था उस पर भी कांटे की टक्कर नजर आ रही है यही कारण है कि प्रधानमंत्री के भाषण भी अब विकास की जगह धर्म पर आ गये हैं क्योंकि भाजपा का आखरी अस्त्र धर्म ही है, परंतु ऐसा लग रहा है कि लोग बदलाव चाह रहे हैं, पश्चिमी उत्तर प्रदेश की बात की जाए तो मेरठ, मुजफ्फरनगर, कैराना, सहारनपुर, बागपत, बिजनौर में भी मुकाबला कड़ा माना जा रहा है, जिससे सत्ता पक्ष की चुनौती बढ़ गयी है ऐसा न हो कि कम मतदान भाजपा या एनडीए को नुकसान दे जाये।

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