नई दिल्ली: मुझे अपलक निहारती तुम्हारी आंखों की आत्मीयता मेरे जीवन की स्नेहमयी धरोहर थी । ऐसा भी बहुत बार हुआ था जब मैं खुद को तुम्हारी आंखों से बचाने की कोशिश करती थी और तुम मुझे लगातार देखते थे और मैं उस वक्त बड़ी हड़बड़ा जाती, असहज हो जाती थी । कई बार मैंने हिम्मत भी की पर तुमसे कुछ कह नहीं पाई । मैं जब-जब तुमसे कुछ कहने के लिए उद्धत होती तो तुम्हारी आंखों में आत्मीयता का भाव मुझे हमेशा रोक देता । और पता है सबसे अजीब बात यह थी कि मेरे चेहरे के बदलते भाव भी तुम्हें कभी परेशान नहीं करते थे ।
तुम्हारे चेहरे पर हमेशा वही मृदुल मुस्कान बनी रहती थी । आवाज में वही स्वाभाविकता और मुझे लगातार देखती तुम्हारी आँखें मुझे विस्मित कर देती थी । मैं जब भी तुमसे मिली हर बार ऐसा ही हुआ । मैं हर बार तुमसे बहुत सारे लोगों के बीच में ही मिलती थी । फिर भी बेसबब मुझे देखकर बातें करना मुझे ... में सिहर जाती थी । तुम एक बड़े पद पर थे सो किसी और से इस बारे में बात करना मुझे अजीब लगता था जाने कोई क्या ही सोच ले । हमेशा लगता था कि जब भी मौका मिलेगा तो मैं तुमसे अकेले में मिलूंगी और पूछूंगी कि क्यों देखते रहते हो, जरा भी नहीं सोचते कि कोई क्या सोचेगा ।और एक बार ऐसे ही मन में बहुत हिम्मत जुटा कर मैं तुम्हारे ऑफिस में आ गई । उसे दिन मैं तुम्हारे सामने बैठी थी और तुमसे बहुत कुछ कहना चाहती थी । तभी तुमने अपने चपरासी से दो कप चाय मंगवाई और चपरासी जब चाय लेकर आया तो उसने तुम्हारे हाथ में चाय का एक कप पकड़ा दिया। अगले ही मिनट उसने एक पेपर पर तुम्हारा हाथ पकड़ कर रखा और कहा सर यहाँ साईन कर दीजिए । और अगले 10 मिनट के समय ने जैसे मुझे झकझोर दिया । वह चपरासी तुम्हें हाथ पकड़ कर वॉशरूम तक लेकर गया । और तुम जब वापस आए दीवार और कुर्सियों का सहारा लेते हुए अपनी कुर्सी पर आकर बैठ गए। मुझे उस 10 मिनट के समय में पता चला कि तुम जन्म से नेत्रहीन थे । तुम्हारे जीवन के अंधकार में तुमने मुझे कभी देखा ही नहीं था और तुम मुझे कभी देख भी नहीं सकते ।वह दिन मेरे जीवन का सबसे अजीब दिन था जब मेरी सारी रूमानियत , मेरे सारे ख्याल ,मेरी सारी शिकायतें है खुद ब खुद खामोश हो गई ।और मेरी आंखों से निरंतर अश्रु बहते रहे। आज भी जब मुझे यह सब बातें याद आती है तो मेरी आंखों से लगातार आंसू बहते रहते हैं और तुम्हारी आँखों की आत्मीयता आज भी मुझे अपनी आगोश में ले लेती है......।
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