ज्ञानमार्गी संत शिरोमणि कबीर दास के प्रकटोत्सव 22 जून 2024 के अवसर पर विशेष :-
Ghaziabad :ज्ञानमार्गी शाखा के महान समाज सुधारक संत कबीर साहेब दलित, पीड़ित, उपेक्षित, प्रताड़ित और अपमानित सभी वर्गों के सामाजिक उत्थान, सम्मान और बराबरी के लिए अनवरत प्रयत्नशील और उपलब्ध रहे, उनकी वाणी ओजपूर्ण सभी प्रकार की जड़ता, रूढ़िवाद, अंधविश्वास, अहंकार, ईर्ष्या, द्वेष को मिटाने के लिए जन-जन को जागरूक करते हुए समाज में अलख जगाती रही, उन्होने कहा भी है कि :-
आग लगी आकाश में, झरि झरि पड़े अंगार| संत न होते जगत में, जल जाता संसार ||
संत, महात्माओं ने अपने उपदेशों में समाज से वैर-भाव मिटाने, निर्वैर रहने, सभी को समान समझने, ऊंच-नीच की खाईं मिटाने, निर्बल पर बल प्रयोग न करने का लगातार संदेश दिया, देश, विदेश की आंतरिक, वाह्य स्थिति, भौतिक और आत्मिक दोनों पक्षों को समान रूप से देख अपनी वाणी द्वारा सभी को जागरूक कर व्यवहार में लाने के लिए प्रेरित किया|
संत शिरोमणि कबीर दास का अवतरण मध्यकाल में 1398 में वाराणसी में हुआ, जहां अंधविश्वास, पाखंड, ऊंच-नीच, असमानता की गहरी खाईं थी, आपने अपने प्रवचन के माध्यम से जैसे सूर्य संसार को प्रकाशित करता है, वैसे ही ज्ञान के प्रकाश को फैला, अंधकार के समूलनाश के लिए अपना सम्पूर्ण जीवन लगा दिया, आपका हिन्दी साहित्य में ही नहीं समग्र भारतीय संत साहित्य और परंपरा में नाम है, जिसकी अनूठी चमक और आभा है| आपका मार्ग समता का है, मानव को मानव से जोड़ने के लिए, प्रेम करने के लिए प्रोत्साहित करता है, कबीर साहेब ने निचले पायदान पर खड़े लोगों में आत्मविश्वास जगाया तथा स्वावलंबन का रास्ता दिखाया, उन्होने विवेक, प्रेम, सत्य और समत्व का मार्ग दिया, वह मानवतावादी संत है, सीधी, सरल, सपाट, बेबाक वाणी में अपनी बात कहने के अभ्यारत रहे है, वह सभी धर्मों से पाखंड, अंधविश्वास मिटाना चाहते थे, तथा सत्य, ज्ञान, तर्क द्वारा जो खरा हो उसे ही लोगों में प्रचारित करते रहे, उनके अनुयायियों ने लोगों में उनकी बात पहुँचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाया, कबीर साहेब आँख की देखी पर विश्वास करते है, वह पंडों, पुजारियों को ललकारते हुए कहते हैं कि :-
“तू कहता कागद की लेखी, मै कहता आंखिन की देखी”
वह प्रेममय, ज्ञानमय, सत्य के पुजारी है, वे जगे हुए है और संसार के मानव को जगा हुआ देखना चाहते है, उन्ही का कथन है कि :-
“सुखिया सब संसार है, खावै और सोवै, दुखिया दास कबीर है, जागै और रोवै”
जो अनुभवी है वह संसार के सत्य को जानकर लोगों के दुख से दुखी होता है, वह जिनके लिए अपना सब कुछ त्याग रहा है, वे अनभिज्ञ है, सोये हुए है, कबीर साहेब उन्हे जगाने का कार्य कर रहे है| वह समाज के पारखी, तार्किक, मुखर और मानव के हर तरह के कल्याण में काम करने वाले संत है, उन्होने पाखंडियों के वर्चस्व को ही चुनौती नहीं दी बल्कि सत्ता को भी अपनी वाणी से ललकारा, उनकी निर्भीकता अपनी बात को मनवाने का कौशल उन्हे और संतों से अलग दिखाता है|रवीन्द्र नाथ टैगोर और पंडित सुंदर लाल शर्मा ने भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू से कहा था कि “यदि भारत और भारतवासियों के बारे में अधिक जानकारी चाहते है तो कबीर को समझिए उन्हे पढ़िये” यह कोई मामूली बात नहीं, ड़ा0 अंबेदकर ने भी कबीर साहेब की साखियों और पदों का गंभीरता पूर्वक अध्ययन किया था, तथा उसके अनुरूप ही उन्होने उनके बताए मार्ग पर चलने का निर्णय भी लिया|
कबीर साहेब तीर्थ व स्नान करने से मोक्ष मिल जाएगा, हम स्वर्ग में चले जाएंगे, तर जाएंगे, उसे कपोल कल्पित मानते थे, उनका कहना था कि गंगा नहाये यदि कोई नर तर गयो, तो मछली क्यों न तरी, जिसका गंगा जी में घर है| उनका मानना था हम अपने आराध्य को खोजते हुए भटकते फिर रहे है, तथा अपना समय नष्टकर, व्यर्थ में धन खर्च कर रहे है|कबीर साहेब ने कहा कि आपका आराध्य तो आपके भीतर है, उन्होने कहा कि :-
“कस्तूरी कुंडल बसे, मृग ढूढ़े बन माहि | ऐसे घट में पीव है, दुनिया जानै नाहि”||
तीर्थ स्थलों में स्नान करने को व्यंगात्मक लहजे में संत कबीर ने कहा है कि :-
“जल में मीन पियासी, हमे सुन-सुन आवै हाँसी”
और मानव को संदेश दिया, सर्वशक्तिमान सत्ता आपके घट में है, कहीं उसे ढूढ़ने की आवश्यकता नही|
कबीर साहेब ने शोषण, अन्याय, उत्पीड़न, जातिपांत, छुवाछूत को भोगा था, देखा था, कबीर साहेब ने उनमे ऊर्जा भरने का काम किया, समाज में फैले गुरुडम और पाखंडियों का विरोध करते हुए कहा कि :-
“जाका गुरु हो आन्हरा, चेला निपट निरंध, अन्धा, अन्धे ठेलिया, दोनों कूप पड्न्त”
उनका मानना था कि अज्ञानी, अहंकारी गुरु कभी भी व्यक्ति और समाज का भला नहीं कर सकता, इनसे आज भी सावधान रहने की आवश्यकता है, खासकर बहनों, बेटियों को इनके शब्दजाल और झांसे में नहीं आना चाहिए|
संत कबीर साहेब ने अन्तिम क्षण तक व्यक्ति, समाज को नई दिशा दी, रूढ़िवादियों, परंपरावादियों, सामंतों, पाखंडियों को झकझोरते हुए उन्होने कहा कि :-
“संतों, देखो जग बौराना, साँच कहे जग मारन धावै, झूठे जग पतियाना”
वह मूर्ति पूजा का खंडन करते रहे और अन्तिम सांस तक सत्य, अहिंसा, स्वावलंबन के लिए लोगों में अलख जगाते रहे, वह संत शिरोमणि थे, रहेंगे, उन्होने स्वयं कठिन परिश्रम कर जीकोपार्जन किया, और लोगों में श्रम की महत्ता को समझाने की कोशिश की, वह आज भी उतने ही प्रासंगिक है| 1518 ई0 में शरीर त्याग दिया, और कहा कि :-
“जौ काशी तन तजै कबीरा, रामय कौन निहोरा”
अंत समय मगहर चले गये, वहाँ भी पाखंड के विरुद्ध कहा कि वाराणसी में तो सभी देह त्याग मोक्ष प्राप्त कर लेते है, तो सर्वशक्तिमान की क्या इसमे भूमिका है, आज कबीर जयंती पर हम उन्हे स्मरण करते है, नमन करते है, वंदन करते है, कि आपने अंधकार से प्रकाश की ओर लोगों को ले जाने, सत्य पर चलने का क्रान्तिकारी मार्ग दिखाया| संसार आपका ऋणी है, आप अजर, अमर है|
लेखक : - राम दुलार याद संस्थापक / अध्यक्ष लोक शिक्षण अभियान ट्रस्ट
मो0 9810311255
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