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जब भी हुई है जग में छल दंभ की लड़ाई, कोई द्रौपदी गई है तब दांव पर लगाई :- प्राची मिश्रा

Ghaziabad :- (सोशल मीडिया) धीरे धीरे सब शांत हो रहा है मौमिता की चीखें भी धुंधली होती जा रही हैं, समाज के हाथ भी मोमबत्ती थामे कुछ थकने से लगे हैं ।
कुछ तो जोश में भीड़ का हिस्सा बने थे #जस्टिसफॉरम़ौमिता बस यही चिल्लाना था , नाश्ता चाय करते हुए नारेबाजी करना आखिर अखबारों के फ्रंट पेज पर भी तो आना है ।
ये तो रोज़ की बात है कोई बात नहीं हमारी आदत हो गई है कुछ देर चीखो चिल्लाओ फिर इंतज़ार करो कोई दूसरी म़ौमिता मिलेगी खून में लथपथ...
फिर शुरू करेंगे ये खेल तमाशा ,सड़कों पर जब भीड़ उतरेगी बैनर पोस्टर नारेबाजी।
और फिर सब व्यस्त हो जाएंगे अपने अपने में कुछ लोग पेपर में पढ़ेंगे कुछ लोग न्यूज में सुनेंगे और बस वही डायलॉग " क्या हो रहा है इस सरकार में" फिर चाय की चुस्की और दूसरी खबर पर नज़र।
113 से भी अधिक बार दांतों से कटा शरीर, आंखों से बहता खून ,टूटी गर्दन और न जाने कितने आंतरिक घाव जिसका बयान भी शब्दों की गरिमा को भंग कर दे।
कितनी पीड़ा ,कितना संघर्ष और कितनी मिन्नतें होंगी उस क्षण में कल्पना करने से ही हृदय कांप उठता है ।
दोष किसको दें किस पर विश्वास करें .....
यदि कंधे से कंधा मिलाकर चलना है तो सब कुछ मर्दों जैसा करना होगा , नाइट ड्यूटी भी करनी होगी ऐसे में कब क्या हो जाए ये कौन जानता है।
बेटी आज घर लौटेगी या किसी बेड पर वस्त्रहीन लहू से लथपथ पड़ी होगी किसे पता।
बलात्कार में कौन सा मृत्युदंड मिलना है ...
हम सब चुप हैं क्योंकि हमें क्या ?
क्योंकि हमसे मतलब नहीं??
हम मोमबत्ती लहराना सीख गए हैं,
हम विदेशी परम्परा के गुलाम होकर भूल गए हैं महाभारत, रामायण....
पाँच वर्ष लगे निर्भया को न्याय मिलने में अब इतना ही समय मौमिता को भी इंतज़ार करना होगा और न जाने कितनी बेटियां अभी भी राह देख रही हैं ।
लचर न्याय व्यवस्था , कुंठित मानसिकता कीड़े मकोड़ों की तरह बढ़ती आबादी, शिक्षा का गोरखधंधा और जाति धर्म में नाम पर लड़ते हम....
ये विश्वगुरु का दिखावा बंद कीजिए ।
गाय को माता ,धरती को माता ,नदियों को माता यहां तक की भारत देश को भी माता कहने वाले हम जो नवरात्रि में माता को ही पूजते हैं उस देश में इस तरह की अराजकता प्रश्नचिन्ह खड़े करती है।
मत पढ़ाओ बेटी इससे बेटी को बचा नहीं पाओगे तुम
बेटी को खड्ग थमाया जाय, चंडिका बनाया जाय।
विचारणीय है।

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