खुद के लिए गर सोच लुँ, थोड़ा मैं तो मुझे खुदगर्ज कहता है ....लुँ मैं सांस भी गर तो उसकी ही इजाजत से
ऐसी वो चाहत रखता है .....
जाऊं कहीं भी मैं तो, वो हमेशा मेरे साथ चलता है ....
न जाने क्यों वो मेरे साथ ऐसा बर्ताव करता है ....
कैसे जीना है मुझे ये भी वही तय करता है .....
लगता है जैसे कभी-कभी मैं इंसान नहीं हूं...
क्योंकि वो हमेशा मुझे अपने हाथ की कठपुतली बना के रखता है ...
Geeta Baisoya ..
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