अजी इस इश्क में अपना निशाना भूल जाओगे
हमारी चाहतों में तुम ज़माना भूल जाओगे
लगाते हो बहुत चक्कर हमारे घर मुहल्ले के
हमारे रास्तों में तुम ठिकाना भूल जाओगे
कभी लैला कभी मजनू कभी शीरी कभी राँझा
पड़े जो इश्क में सब आशिकाना भूल जाओगे
सभी कसमें सभी वादे महज देते तसल्ली हैं
बड़े नादान निकले ‘सिंह’ समझते ही नहीं इतना
समझ आया ज़माना गर ज़माना भूल जाओगे
समीक्षा सिंह | कासगंज
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