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जमानत नियम है और जेल अपवाद है':- SC

SC ने यह फैसला जलालुद्दीन खान नामक व्यक्ति को जमानत पर रिहा करते हुए सुनाया :- रंजना

Ghaziabad :- देश की सर्वोच्च अदालत ने हालही में फिर से स्पष्ट शब्दों में संदेश दिया कि जमानत नियम और जेल को अपवाद मानने की बात महज किताबी नहीं है। इसे न सिर्फ सामान्य मामलों में बल्कि UAPA,PMLA,NDPS,PC.जैसे विशेष कानून से जुड़े मामलों में भी व्यवहार में लाने की जरूरत है।बता दें कि 'जमानत नियम है और जेल अपवाद है' यह अवधारणा 1977 में न्यायमूर्ति वी.आर. कृष्ण अय्यर द्वारा ‘राजस्थान राज्य बनाम बालचंद उर्फ बलिया’ मामले में लिखे गए फैसले में अस्तित्व में आई थी, और तब से अदालतों द्वारा बड़ी संख्या में मामलों में इसका उल्लेख किया गया है।आपने देखा की पिछले कुछ समय से अलग-अलग मामलों में सुप्रीम कोर्ट बेल की अहमियत को बार-बार रेखांकित करता रहा है।  इसका एक ताजा उदाहरण आम आदमी पार्टी के नेता और दिल्ली के पूर्व उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया की जमानत पर दिया गया हालिया फैसला है। इस मामले में शीर्ष अदालत ने PMLA (Prevention of Money Laundering Act, 2002) जैसे विशेष कानून में दी गई ट्रिपल टेस्ट की कठोर कसौटियों के बावजूद ट्रायल में देरी को आधार बनाते हुए सिसोदिया को जमानत दे दी। इसके अलावा SC ने यह फैसला जलालुद्दीन खान नामक व्यक्ति को जमानत पर रिहा करते हुए सुनाया। खान पर UAPA(Unlawful Activities Prevention Act)के कड़े प्रावधानों और अब समाप्त हो चुकी भारतीय दंड संहिता की अन्य धाराओं के तहत प्रतिबंधित संगठन पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (PFI) के कथित सदस्यों को अपने घर की ऊपरी मंजिल किराए पर देने के आरोप में मामला दर्ज किया गया था। रंजना प्रजापति एडवोकेट जानकारी देते हुए कह कि, कुछ बेहद कड़े कानूनों की वजह से हाल में यह मान्यता मजबूत होती दिख रही है कि जिसकी भी इन कानूनों के तहत गिरफ्तारी हो गई, उसे आसानी से जमानत नहीं मिलेगी। हालांकि ऐसे कई मामलों में आरोप बेहद गंभीर हैं, लेकिन हैं तो वे आरोप ही। ऐसे में अपराध साबित होने से पहले अगर किसी को महीनों और सालों जेल काटनी पड़ जाए तो न्याय की प्रक्रिया ही सजा बन जाती है।
मनीष सिसोदिया की जमानत मामले में शीर्ष अदालत ने PMLA जिसमे सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा कि ऐसे कानूनों में भी अगर दी गई व्यवस्थाओं के अनुरूप आधार बनता है तो अदालतों को जमानत देने से हिचकना नहीं चाहिए। अदालत ने इस मामले में पटना हाईकोर्ट और ट्रायल कोर्ट के रुख को गलत बताते हुए हुए कहा कि उनका ध्यान मुख्यतः आरोपों की गंभीरता पर ही लगा रहा और वे साक्ष्यों का तटस्थ विश्लेषण नहीं कर कर पाए।केवल इस वजह से कि कार्यवाही गंभीर अपराध के लिए चल रही है जमानत देने से मना करना अनुचित है गंभीर अपराध सुसंगत हो सकता है पर जमानत न देने का एकलौता आधार नहीं हो सकता 'जमानत नियम है और जेल अपवाद है, यह विशेष कानूनों पर भी लागू होता है। अगर अदालतें उचित मामलों में जमानत देने से इनकार करना शुरू कर देती हैं, तो यह अनुच्छेद 21 के तहत गारंटीकृत अधिकारों का उल्लंघन होगा।'
 लेकिन यह बात भी गौर करने लायक है कि कई मामलों में अदालत से जमानत दिए जाने के फैसले को आम लोगों के बीच इस तरह से पेश किया जाता है जैसे अदालत ने बेगुनाह करार दिया हो। सुप्रीम कोर्ट ने चेतावनी देते हुए कहा कि ऐसे मामलों में जमानत रद्द भी की जा सकती है।ऐसे मामलों में विशेष सावधानी बरतने की जरूरत है जो किसी न किसी गंभीर आरोप में कानूनी प्रक्रिया से गुजर रहे हैं।
रंजना प्रजापति एडवोकेट, सिविल कोर्ट गाजियाबाद, 

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