बिलासपुर छत्तीसगढ़:- मनुष्य का मन कितना सूक्ष्म होता है परंतु न जाने वो मनुष्य से क्या-क्या नही करवाता, इसीलिए तो भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन से कहा था कि जिसने अपने मन को वश में कर लिया , सारी दुनिया उसके वश में हो जाती है क्योकि सबसे कठिन कार्य यदि है तो वो है अपने मन को वश में करना। मन के अधीन होकर ही व्यक्ति कोई भी अच्छे या बुरे काम को अंजाम देता है और उस काम के फल को भी वो स्वयं ही प्राप्त करता है। दुनिया भी कितनी विचित्र है।
लोग तो ये भी कहते है कि मनुष्य को सदैव सम भाव होना चाहिए। दुःख आने पर अधीर नही होना चाहिए और सुख आने पर उच्छऋंखल नहीं होना चाहिए परंतु दोनो ही कार्य कितना कठिन होता है। सबसे अधिक कठिन काम है, स्वयं को समझाना।
समय ने करवट ली। माँ की हालत धीरे-धीरे सुधरने लगी। जो माँ अपने मन से करवट भी नही बदल नही पाती थी,अब खुद से ही करवट बदलने लगी। पैर भी धीरे -धीरे ठीक होने लगे थे। जो पैर घुटने से चिपके हुए थे अब धीरे-धीरे फैल रहे थे। माँ का शरीर फिर से पहले जैसा होने लगा। जड़ी-बूटी का इतना चमत्कारी असर हुआ कि माँ अब बिस्तर में हिलती -डुलती । अपने पैरों को छू-छूकर खुश होती और कहती- "मिनी! अब मैं ठीक हो जाऊंगी न। अब देखना मेरे पैर सीधे हो जाएँगे। अब मैं चलने लगूंगी। अब मैं फिर से सब काम कर लूंगी। एक कमरे में रह-रह कर मेरा मन ऊब चुका है। अब लगता है कब मैं बाहर की दुनिया देखूंगी। अब मुझसे बिस्तर पर रहा नहीं जाता। मिनी! कब मैं चलूँगी ऐसा लगता है।"
मिनी हमेशा मां को धीरज बंधाती। मां से कहती- "अभी आपको अधिक हिलना डुलना नही है माँ ! कुछ दिन और धीरज रखिये।" मां एक दिन कहने लगी- "मिनी! मैं उठकर बैठना चाहती हूँ। थोड़ी सी मदद कर न। मुझे उठाकर बिठा दे।"
मिनी ने बहुत मना किया पर मां नही मानी। मिनी ने पति की मदद से माँ को बैठाने की कोशिश की। माँ सही में बैठ गई। अब तो सब की खुशी का ठिकाना नही रहा। मां भी बहुत खुश हो गई।
जड़ी के कारण लग रहा था कि कमर की हड्डियां धीरे-धीरे जुड़ चुकी थी। कुछ देर बैठने के बाद जब माँ को लेटने का मन हुआ मिनी ने सहारा देकर लिटा दिया।
अब जब भी मां को बैठने का मन करता वो ऐसे ही करती। मां को पहले लेटे-लेटे ही ब्रश करवाना और नहलाना पड़ता था। अब मां बिस्तर पर बैठे-बैठे ब्रश करती । अब मिनी मां को बैठाकर नहलाती। एक दिन माँ ने पैर पलंग पर लटका कर बैठने की ज़िद की। मिनी ने मां को वैसे भी बैठाया।
अब मां पूर्णतया फिर से सेठानी की तरह होती जा रही थी। यहाँ तक कि अगर कोई उन्हें बिस्तर पर बैठे देख ले तो समझ ही न पाए कि उन्हें समस्या क्या है।
एक दिन माँ बिस्तर से उठा के चेयर पर बैठाने की ज़िद करने लगी। अब माँ का शरीर भारी होने लगा था। मिनी अकेले उठा भी नही पाती थी। पति की मदद ले के मां को उठाना बैठाना पड़ता था। पति ने मिनी के साथ मां को सहारा दिया और खुशी-खुशी दोनो ने बिस्तर से धीरे से चेयर पर मां को बैठाया।अब तो सब की खुशी देखते बनती थी।
सर ने खुश होकर माँ के लिए व्हील चेयर भी मंगा लिया। अब मां को सहारा देकर व्हील चैयर पर बैठाकर घर में मिनी घुमाती भी थी। परंतु ये बहुत कठिन कार्य था। पैर अभी पूरे सीधे नही हुए थे। इसलिए बहुत ही सावधानी से मिनी पति की मदद से ही मां को बिस्तर से व्हीलचेयर पर फिर व्हीलचेयर से बिस्तर पर ला पाती थी।
माँ के पैर अब 60% सीधे हो चुके थे। मिनी की खुशी का ठिकाना नही था। मिनी अब विद्यालय में भी बहुत खुश रहती थी। सारे काम खुशी-खुशी करती थी। अपने विद्यालय के बच्चों के लिए, अध्ययन-अध्यापन के अलावा, अतिरिक्त सांस्कृतिक और रचनात्मक गतिविधियों का आयोजन भी करवाती थी। प्राचार्य महोदया का भी साथ मिनी को मिलता रहा क्योंकि मिनी ने कभी 20 मिनिट की सीमा का उल्लंघन नही किया था। साथी शिक्षिकाऐं कहती थी कि आप चाहें तो आराम से आ जा सकती हैं ,देर होने से भी चलेगा परंतु मिनी को पता था कि उसकी ये गुस्ताखी माफ नही की जाएगी इसलिए वो हर हाल में इस 20 मिनिट की अवधि में विद्यालय पहुँच ही जाती थी। इस चक्कर में वो कई बार गिरी भी । एक्सीडेंट से भी कई बार बाल-बाल बची पर 20 मिनिट की सीमा का उसने कभी उल्लंघन नही .किया...................क्रमशः
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