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श्रीमहंत प्रेम गिरि महराज भगवान दूधेश्वर के ध्यान में मग्न रहते थेः श्रीमहंत नारायण गिरि महाराज

भगवान दूधेश्वर की पूजा-अर्चना के बाद करते थे पहलवानी
गाजियाबादःश्रीमहंत प्रेम गिरि महाराज विक्रम संवत 1600 में सिद्धपीठ श्री दूधेश्वर नाथ मठ महादेव मंदिर के तीसरे श्रीमहंत बने। उन्हें पहलवानी का बहुत शौक था। श्री दूधेश्वर नाथ मंदिर के पीठाधीश्वर, श्री पंच दशनाम जूना अखाडा के अंतरराष्ट्रीय प्रवक्ता, दिल्ली संत महामंडल के राष्ट्रीय अध्यक्ष व हिंदू यूनाइटिड फ्रंट के अध्यक्ष श्रीमहंत नारायण गिरि महाराज ने बताया कि उनका शरीर भी पहलवानों जैसा ही था। भगवान दूधेश्वर की पूजा-अर्चना के बाद पहलवानी करना उनकी दिनचर्या थी और इसके लिए उन्होंने मंदिर में ही अखाडा भी बनवा रखा था। महाराजश्री के पास एक बडा सा अजगर भी रहता था। वह उन्हें घायल अवस्था में जंगल से लाए थे। उसका उपचार कराकर उन्होंने अपने तीन शिष्यों से उसे जंगल में छोड आने को कहा। अजगर को उठाने व जंगल तक छोड आने में शिष्यों की हालत खराब हो गई जबकि महाराजश्री उसे अकेले ही आसानी से उठाकर ले आए थे। अजगर 3 दिन बाद फिर मंदिर पहुंच गया तो उसे दूर जंगल में छोडा गया मगर वह फिर वापस आ गया। इसके बाद उसे हिंडन के किनारे छोडा गया तो फिर से मंदिर आ गया। इस बार महाराज जी ने उसे अपने पास ही रख लिया। श्रीमहंत नारायण गिरि महाराज ने बताया कि एक बार मंदिर में सदानंद नाम के एक वृद्ध संयासी मंदिर आए और श्रीमहंत प्रेम गिरि महाराज को देखकर बोले कि लगता है हम पहले भी मिल चुके हैं। इस पर महाराजश्री ने कहा कि हम पूर्वजन्म में मिले थे और बहुत समय तक साथ भी क्योंकि हम दोनों भाई थे। आप तब भी बडे थे और इस जन्म में भी बडे हैं। महाराजश्री के कहने पर सदानंद ने ध्यान लगाया तो उन्हें पूर्वजन्म की सब बातें याद आ गई। कुछ देर बाद महाराजश्री ने महात्मा सदानंद को जाने को कहा और बोले कि अब आप जाओ क्योंकि हम सांसारिक बंधनों में बंधने नहीं बल्कि शिव आराधना करने आए हैं। सदानंद जी ने उन्हें मूस्कराकर देखा और नमो नारायणायः कहकर निकल गए। एक बार एक परेशान वृद्धा उनके पास आई और बोली कि उनके बेटे को तीन पुत्र हुए और तीनों एक वर्ष का होने से पहले ही भगवान के पास चले गए। अब बहू फिर से उम्मीद से हैं। इस पर महाराजश्री ने कहा कि अपने बेटे से कहो कि रोज ना आ सके तो हर सोमवार को मंदिर आकर भगवान दूधेश्वर का अभिषेक करे। बेटे ने ऐसा ही किया तो उसके फिर पुत्र हुआ। वृद्धा उसे लेकर महाराजश्री के पास आई और उनका आशीर्वाद लिया। महाराजश्री ने विक्रम संवत 1649 को समाधि ली और उनके समाधि लेने के बाद अजगर भी पता नहीं कहां चला गया। श्रीमहंत नारायण महाराज ने बताया कि मान्यता है कि मंदिर में महाराजश्री की समाधि पर नित्यजल चढाने से शारीरिक बल प्राप्त होता है और संतान सुख की प्राप्ति होती है।

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