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उपन्यास मां - भाग 24 चार अवस्थाएं:- रश्मि रामेश्वर गुप्ता

बिलासपुर छत्तीसगढ़ :- कहते हैं हर वो अवस्था सफल हो जाती है , जो अपने आगे की अवस्था को पहचान लेती है । मेरे कहने का तात्पर्य ये है कि अगर मनुष्य बचपन में किशोरावस्था की, किशोरावस्था में जवानी की और जवानी में अगर वृद्धावस्था की परेशानियों को जान ले तो उसकी चारों अवस्थाएं धन्य हो जाती हैं। निश्चित रूप से ऐसा मनुष्य दिग्भ्रमित होने से बच जाता है। शायद इसीलिए बच्चों को बचपन से गीता और रामायण जैसे ग्रंथ पढ़ने के लिए बड़े बुजुर्ग प्रेरित किया करते हैं। हर एक अवस्था दूसरी की परीक्षा लिया करती है। जैसे बड़े ,बच्चों की परीक्षा लेते हैं, वैसे ही वृद्धावस्था भी जवानी की परीक्षा लेती है । इस परीक्षा में जो उत्तीर्ण हो जाते है वो अत्यंत ही भाग्यशाली होते हैं। ये वही बाते हैं जो मिनी तब पढ़ा करती थी जब उन्हें इन बातों की समझ भी नही थी। 
माँ अब बेटे के पास जाने के लिए कभी-कभी रोने भी लगती थी। उनकी इन इच्छाओं के आगे मन हार सा जाता था। सारे लोग मां को समझा के थक गए , माँ नही मानी। एक दिन सर ने अपने दोस्त के द्वारा सीधे खबर भिजवाई भैया को कि माँ उनके घर जाने के लिए अब रोने लगी है।
                       जो जवाब वहाँ से मिला उसे सर के दोस्त को भी बताते हुए हिचकिचाहट हो रही थी फिर भी बताना तो था ही। भैया उनसे बोले - "बोल दो उनसे, जब वो मर जाए तब मेरे घर पहुंचा दे मैं क्रिया-कर्म कर दूंगा। इसके पहले उसके जीते जी न ही मैं उनसे बात करूँगा न ही उनसे मिलने जाऊँगा।" इस खबर को सुनके मिनी और सर अवाक रह गए कि कोई व्यक्ति इतना गंदा जवाब भी दे सकता है? परंतु माँ, माँ ही होती है।
                            गर्मी की छुट्टियां भी लगने वाली थी। मिनी का दिल जोर-जोर से धड़कने लगा। अब मां से स्कूल का बहाना भी नही कर सकेगी। अब माँ जाने की जिद करेगी तब मिनी क्या जवाब देगी ये बात उसे सताने लगी। स्कूल में बच्चों का आना भी परीक्षा के बाद बंद हो गया था। सिर्फ स्टाफ के लोग आते थे। 
मिनी के विद्यालय में सफाई कर्मी के पद पर एक महिला की नियुक्ति हुई थी। मिनी ने एक दिन उनसे पूछा- "मोनिका ! तुम कहाँ तक पढ़ी हो?"
 उसने कहा- "मैडम मैं तो बिल्कुल भी नही पढ़ी हूँ।"
 मिनी ने कहा -"अगर मैं अभी छुट्टियों में तुम्हे रोज़ एक घंटे पढ़ाने आ जाऊं तो तुम मुझसे पढ़ोगी?"
 मोनिका खुशी-खुशी तैयार हो गयी। मिनी ने तुरंत एक आवेदन लिखा और प्राचार्य महोदया से अनुमति ले ली कि वो ग्रीष्म कालीन अवकाश में सुबह 7 से 8 बजे तक विद्यालय में अध्यापन करवाएगी।
                    प्राचार्य महोदया ने ये कहकर अनुमति दी कि मैं प्रतिदिन मोनिका की कॉपी देखूंगी कि आपने उसे क्या पढ़ाया। अनुमति लेनी इसलिए आवश्यक थी कि विद्यालय का माहौल बड़ा सुनसान हुआ करता था। अगर इस बीच, जाने - अनजाने कोई दुर्घटना घट जाए तो प्राचार्य महोदया का साथ तो मिले। प्राचार्य महोदया की अच्छाइयों और स्नेह ने ही शायद मिनी के प्राणों की रक्षा की थी। हमें पता नही चलता कि हमारी थोड़ी सी अच्छाई और थोड़ा से स्नेह किसी के जीवन को कितना बड़ा सहारा देती है। 
                    प्राचार्य महोदया ने कहा कि आप निश्चिंत होकर पढ़ाइये। आपको किसी प्रकार की तकलीफ नही होनी चाहिए। ईश्वर की कृपा से हमारे विद्यालय में सभी सुविधाएं हैं। मिनी ने कहा- "मैम ! मुझे पूरा विद्यालय नही खुलवाना। मुझे बाहर का सिर्फ एक कमरा चाहिए।"
 प्राचार्य ने फिर कहा कि तुम ऐसा कमरा मांग रही हो जहाँ पंखा भी नही है । गर्मी का दिन है। जब हमारे पास अच्छे कमरे हैं तो फिर वो क्यों? मिनी ने कहा - "नही मैम! पूरा विद्यालय नही मुझे सिर्फ एक कमरे की चाबी दे दीजिए।" मैम ने अनुमति दे दी। 
मिनी ने प्राथमिक विद्यालय के प्रधानपाठक से उस कमरे की चाबी ले ली। प्रधानपाठक से कुछ प्राथमिक स्तर की किताबे भी ले ली और मध्यान्ह भोजन बनाने वाली महिलाओं से भी आने का आग्रह किया। उनके द्वारा गांव में भी खबर भिजवाई कि गांव में और कोई भी ऐसी महिला हो, या लड़की हो जिन्हें पढ़ना नही आता तो वो यहां आकर निःशुल्क पढ़ाई कर सकती है। मिनी खुश हो गई ये सोचकर कि अब वो मां से कह सकती है कि मुझे तो रोज़ विद्यालय जाना होता है तो मैं कैसे आपको कही ले के जा सकती हूँ ?.............. क्रमशः

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