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उपन्यास मां - भाग 29 सगाई और शादी:- रश्मि रामेश्वर गुप्ता

बिलासपुर छत्तीसगढ़ :- सगाई का दिन तो बीत गया परंतु सुबह होते ही ये खबर सब तक पहुच गयी। हर घर में सगाई के चर्चे। अब शादी की तारीख भी नज़दीक ही थी। घर में ससुराल वालों का रवैया देखकर रूह कांप गयी थी। फिर भी बेटी की शादी तो करनी ही थी। उधर भी वही हाल, भाई की शादी तो करनी ही थी। मिनी के पूरे समाज के प्रमुख व्यक्ति सक्रिय हो गए थे। सभी लोग पापा को , भैया को दिलासा देते थे। कहते थे- "आप लोग चिंता मत कीजिये दाऊ जी! इस बार हम सब रहेंगे। शादी में कोई भी विघ्न बाधा नही आने देंगे।"
मिनी सब देखा करती थी। मां दहेज़ की तैयारियां किस प्रकार कर रही है। मां की आंखों से नींद गायब हो चुकी थी। दहेज़ के लिए एक-एक बर्तन मां ने इकट्ठे किये क्योकि मिनी अकेली और लाडली बेटी। उसे किस किस चीज़ की आवश्यकता होगी, मां बड़े ध्यान से बड़े से बड़े और छोटे से छोटे सारे बर्तन इकट्ठे कर रही थी। सभी बर्तनों की क्वालिटी का भी ध्यान दिया जा रहा था। बर्तन मजबूत और अच्छी क्वालिटी के होने चाहिए। दहेज़ में देने के लिए मां ने क्या नही बनाए। अचार, मुरब्बा, कई प्रकार की बड़ी, बिजौरी, लाइबरी, बहुत प्रकार के पापड़ जिसमे दाल के पापड़, चावल के पापड़, साबूदाने का पापड़, चाकोली, जितना बना सकती थी मां बना बना कर अच्छे से सूखाकर हिफाज़त से रख रही थी। शादी के दिन करीब आने पर बड़े-बड़े आकार का कलेवा बनाना शुरू कर दी। सारी महिलाएं इकट्ठी होकर बर्क लगे हुए बड़े आकार के 11-11 लड्डू, डिज़ाइन वाली 11-11 पपची, 11-11 खाजा, गुझिया, सलौनी सब बनाई। दहेज़ में देने के लिए अलग और सब के लिए अलग। दिन रात मां तैयारियां करने में लगी रहती। मिनी के लिए कपड़े, जेवर सब कुछ होना चाहिए। मिनी बड़े परिवार में जा रही है तो किसी चीज़ की कमी नही होनी चाहिए इसलिए सभी खाने पीने के सामान अधिक मात्रा में पैक किये जा रहे थे। इस दौरान एक दिन मां एक बर्तन के दुकान में गई थी ये पूछने की मेरे घर मे एक बड़ा सा बहुत ही मजबूत हंडा (पानी भरने का बहुत बड़ा बर्तन) है, उसमे पालिश किया जा सकता है क्या? 
                          वो बर्तन की दुकान जेठानी के चचेरे भाई की थी। उसने बातों ही बातों में जेठानी को बताया कि मिनी की मां आई थी कल। जेठानी ने पूछा - "क्यो?"
उसने सहज भाव से बता दिया। उसने मां से मुलाकात होने पर माँ को भी खुश होकर बताया था कि मैने मिनी की जेठानी को बताया कि आप हमारे यहाँ आई थी। बात आई गई हो गई। किसी ने सोचा भी नही था कि इस छोटी सी बात का क्या परिणाम होने वाला है।
                        शादी के एक दिन पहले मिनी को भय सताने लगा। उसने मां से रात में सोते समय पूछा- "मां ! सब लोग कहते रहे आपको कि आपने अपनी बेटी को कमल का फूल बना रखा है। कभी कोई काम नही करवाया। कल मेरी विदाई हो जाएगी। आप मुझे आज तो कह दो - बेटी! ससुराल जाकर अच्छे से काम काज करना। मेरी लाज रख लेना। " 
                       मिनी मां से ये बाते सुनना चाहती थी पर मां ने कभी नही कहा तो मिनी को हार मान कर मां से पूछना ही पड़ा। मां ने भरपूर विश्वास से कहा-" मिनी! मुझे भरोसा है , तू समय आने पर सब काम अच्छे से कर लेगी।" 
मिनी को मां की बातों पर बहुत आश्चर्य हुआ कि कोई मां ऐसे भी बोल सकती है पर मिनी को मां के विश्वास का संबल मिल गया था।
               शादी की पवित्र बेला भी आई। शादी के दिन भी बारातियों का स्वागत सत्कार यथा योग्य किया गया पर जेठानी के पिताजी ने पहले बारातियों का स्वागत अपने घर में करवाया ये कहकर कि वहाँ व्यवस्था नही है। वो भी ठीक ही था। बारातियों का दो -दो जगह स्वागत हुआ। बारात खूब धूमधाम से द्वार पर पहुची। समाज के सभी सदस्य तैनात थे। उस दिन तो खाने-पीने का भरपूर इंतेजाम था। लोग काफी खुश थे। सबने खाया पिया। बीच-बीच में जेठानी के पिताजी माहौल खराब करने की कोशिश में लगे रहे पर उनकी दाल नही गल रही थी। 
फेरा होते तक सुबह के 4 बज रहे थे। अब विदाई की बेला नज़दीक थी। समाज के लोकल प्रमुख व्यक्ति रात भर तैनात थे वो ये सोच कर कि अब तो शादी हो गई केवल विदाई बची है, निश्चिंत होकर घर पहुचे ही थे कि एक नई मुसीबत गले आ पड़ी। दूसरे नं के जेठ दहेज़ का समान पैक करवाना शुरू ही किये थे कि उन्हें जेठानी के पिताजी ने रोक दिया। भैया ने पूछा- "क्या हुआ?" 
उत्तर मिला- "आपने हमे सब समान पुराने दिए हैं इसलिए हम यहाँ से एक भी समान नही ले जाएंगे।"
घर के सभी सदस्यों को ऐसा लगा जैसे काटो तो खून नही। 
भैया फिर सभी बुज़ुर्गों को जगाने उनके घर गए। सारी बाते बताई। सबने पूछा- "लड़की को ले के जा रहे है या नही?"
भैया ने कहा- "उसे बस ले जाना चाहते है।"
 सबने कहा- " तुम चिंता मत करो। उनकी जैसी मर्ज़ी आये करने दो।" 
अब फिर मिनी के घर के सारे मेहमान दुखी हो गए। उन्हें समझ नही आ रहा था कि ये कौन से प्रकार की शादी है।
अब विदाई के लिए क्या किया जाए ? जब सर से बात हुई तो सर ने भी कह दिया कि हम सिर्फ मिनी को लेकर जाएंगे और कुछ नही चाहिए हमे। आपने दे दिया हमने पा लिया।
माँ ने अपने दामाद से कहा - "बेटा!ये कंकण का परात तो जरूरी है ।"सर ने कहा- "नही रहने दीजिए।"
                             मिनी को लगा बापरे ये लोग कितने अमीर है जो मुझे बस ले जाना चाहते है ? मिनी का दिमाग काम नही कर रहा था, अब करे तो क्या करे। सर के मित्र ने कहा - "जल्दी विदाई कीजिये।"
                   घर में किसी का दिमाग काम नही कर रहा था। भारी मन से बहुत जरूरी पूजा की ,नेग की, आवश्यक सामग्री गाड़ी में रखवाई गई। अब मिनी की बारी आई तो उसने पूछा- सी मैं कल क्या पहनूँगी?"
                   जल्दी से एक सूटकेस मिनी को दिया गया जिसमे मिनी ने अपने लिए कुछ साड़ियां रखी। मां ने ससुराल वालो के लिए नेंग की साड़ियां भी रखवाई। माहौल इतना खराब हो चुका था कि परिवार के सब लोग कहने लगे - "जल्दी विदाई करो।"
 मिनी क्या करती चुपचाप सर के पीछे-पीछे चलना था उसे तो। जैसे उन्हें घर के लोग पहुचाये वैसे ही जाकर गाड़ी में बैठ गई। उसे तो ये भी ध्यान में नही आया कि विदाई के समय बधू मायके वालों के गले लगके कितना रोती है। जब गाड़ी में बैठी तब मिनी को डर सताने लगा कि उसे भी कही ससुराल में ले जा के मार न डाले। उसने अपने चचेरे भाई से सिर्फ इतना कहा कि भैया मुझे नही पता अब मैं लौटकर आऊंगी भी या नही? बस मिनी ने चलते-चलते मां का चेहरा देखा था। गोरी गोरी मां का चेहरा बिल्कुल लाल हो चुका था। पिता जी की सिर्फ आंखे देखी थी जो टमाटर से भी अधिक लाल हो चुकी थी। दोनो के आंखों से आंसू बहने का नाम नही ले रहे थे। विदाई के समय भाई मीठा पानी पिलाकर बहन को विदा करता है। पानी पिलाते समय भैया का चेहरा देखा था मिनी ने पहले कभी इतना परेशान चेहरा नही देखा था। गाड़ी में बैठे वर वधु की, घर के सभी महिलाओं ने आरती परछन किया आशीर्वाद दिया। गाड़ी चल पड़ी। मिनी ने पीछे मुड़ कर देखा तो भैया रो रहे थे............क्रमशः

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