Hot Posts

6/recent/ticker-posts

उपन्यास मां - भाग 30 सासू मां:- रश्मि रामेश्वर गुप्ता

बिलासपुर छत्तीसगढ़:- मिनी जब कभी ससुराल के बारे में सोचती तो उसे सब से अधिक डर लगता था, सासू माँ के नाम पर क्योकि शायद इस शब्द को ही लोगो ने ऐसा बना डाला है कि इस नाम से ही डर लगता है । मिनी को भी रास्ते में बहुत डर लग रहा था। उसे लग रहा था, पता नही मेरी सासू माँ कैसी होगी?
 गाड़ी सबसे पहले मां महामाया के मंदिर में रुकी फिर मां का दर्शन कर आशीर्वाद लेने के पश्चात फिर ससुराल के द्वार पर पहुची। मिनी ने जब सासु मां को देखा तो उनका चेहरा अद्भुत ख़ुशी से भरा हुआ मिला। सासू मां की आंखों से जैसे प्यार छलक रहा हो।
                       द्वार पर वर वधु का स्वागत हुआ, ससुराल के सारे रस्म सम्पन्न हुए। सत्यनारायण स्वामी की पूजा अर्चना हुई । आंगन में स्थापित शिव जी की पूजा हुई। मिनी ने सभी का आशीर्वाद लिया। मिनी के हाथो को दूध, दही और घी में डुबाकर उसे रसोई घर में प्रवेश दिया गया। 
                    दूसरे दिन मिनी ने देखा सुबह -सुबह सासु मां ने मिनी के स्नान के लिए पानी भरवाकर स्वयं ही रख दिए हैं। मिनी ने कहा- "मां !आप क्यों ये काम कर रही है?"
 सासू मा ने खुश होकर कहा- "कुछ नही बेटा! तुम जल्दी से स्नान कर लो।"
 मिनी स्नान करके आई तो देखा कि शिवजी के पास सासू मां ने पूजा के लिए पानी भरकर रख दिए हैं। कहने लगी- "बेटा मुझे पता है तुम बिना पूजा किये कुछ नही खाती हो इसलिए मैंने पूजा की सारी तैयारियां कर दी है तुम जल्दी से पूजा कर लो।"
 मिनी की पूजा जैसे ही पूरी हुई सासू मां ने कहा - "अब पहले नाश्ता कर लो फिर तुम रसोई में जाना।"
 मिनी को बड़ा आश्चर्य हो रहा था। मिनी के रसोई में रहते तक सासू मां आराम की फिर जैसे ही सब का भोजन हुआ, सासू मां रसोई में ये देखने आई कि मिनी ने खाना खाया या नही ?
 जब सासु माँ ने देख लिया कि मिनी ने खाना खा लिया फिर कहने लगी - "चलो मिनी!अब तुम थोड़ी देर आराम कर लो।" 
शाम को जब सभी जेठ बाहर चले गए तो सर और मिनी को अपने कमरे में बुला लिया और खूब आशीर्वाद देने लगी। सासू माँ कहने लगी-"बेटा ! तुम दोनो कभी किसी बात की चिंता मत करना। एक दिन तुम्हारे पास सब कुछ हो जाएगा। मुझे बहुत प्यारी बहू मिली है । मैं बहुत खुश हूँ।"
                     खूब आशीर्वाद देकर फिर कहने लगी- "जाओ बेटा! अब दीपक जला लो फिर रसोई में जाना।"
                 रात में फिर सासु मां रसोई में देखने आई कि मिनी ने खाना खाया कि नही ? अब ये सारी बातें सासू मां की दिनचर्या में शामिल हो चुकी थी। मिनी कहती- "माँ ! मुझे अच्छा नही लगता मेरे स्नान के लिए आप पानी भरवाती है ।"
सासू मां कहती- "अरे! अगर मैं नही होती तो तुम्हे ऐसा नही लगता कि मेरी सासू मां होती तो मेरा दुलार पूरा करती।"
 मिनी को सासू मां की बाते सुनकर बड़ी हैरानी होती थी। शाम को जैसे ही सभी जेठ बाहर जाते सासू मां मिनी को अपने कमरे में बुलाने के लिए बेचैन हो उठती। सासू मां ने कभी स्वप्न में भी दहेज़ के विषय में नही पूछा। हर रोज़ शाम को बस इतना कहती कि तुम दोनो के पास सबसे बड़ा धन है और वो है संतोष धन । इसलिए मैं कहती हूँ देखना एक दिन तुम्हारे पास सब कुछ हो जाएगा। तुम्हे कभी किसी चीज़ की कमी नही होगी। मैं नही भी रहूंगी तो तुम मेरी बातों को याद रखना बेटा! कभी किसी बात की चिंता मत करना। एक दिन सासू मां ने कहा- "तुम्हे पता है मिनी! तुम्हारे आने से पहले मेरी तबियत इतनी खराब हुई थी कि मेरा बचना मुश्किल हो गया था। मेरी किस्मत में तुम्हे देखना लिखा था इसलिए तो आज मैं इतनी अच्छी हो गई।"
  सासू माँ का स्नेह से भरा चेहरा देख कर मिनी सारे दुख-दर्द भूल जाती। मिनी को, रोज शाम को सासू मां खूब आशीर्वाद देती। मिनी को ऐसा लगता जैसे उसे दुनिया की सारी संपत्ति मिल गई हो। एक दिन सासू माँ दोपहर में कह रही थी - "जब मिनी खाना खा लेती है न तो मुझे बड़ी राहत महसूस होती है।"
 मिनी चौक गई उसे याद आया ये बात तो मायके में माँ कहा करती थी- "जब मिनी खाना खा लेती है तब मुझे बड़ी राहत महसूस होती है।" मिनी ने अपनी मां और सासू मां के प्रेम में रंच मात्र भी फर्क महसूस नही किया।
मिनी ने ससुराल में रहकर ही जाना कि बेटियों की दो मां होती है, एक मायके में और एक ससुराल में और उन दोनो का जीवन में कितना अहम स्थान होता है। 
मिनी ने देखा कि घर के सभी बड़ो के मन में मिनी के प्रति स्नेह और आशीर्वाद के भाव थे। छोटे बच्चे भी दिन भर चाची-चाची कहकर साथ में ही रहते। मिनी भी बच्चों के साथ रहकर खुश रहती परंतु तीसरे न. के जेठ और जेठानी का रवैय्या जैसे शादी के पहले था वैसे ही बना रहा। दिन बीतते गए । सासू मां ने अपने पोते को भी बहुत प्यार दिया और एक दिन पूरे परिवार के बीच सर की ही गोद में सर रख कर , सर को और मिनी को आशीर्वाद देते हुए सब को छोड़कर चली गई। 
                           सासू मां का जाना पूरे परिवार के लिए दुखद तो था ही परंतु सर के लिए और मिनी के लिए अत्यंत ही असहनीय था। सासू माँ के जाने के बाद सर ने और मिनी ने बहुत झंझावात सहे। मायके और ससुराल दोनो सम्पन्न होने के बाद भी मिनी और सर ने बहुत कुछ सहन किया। जो विष ससुराल और मायके के बीच घोला जा चुका था आखिर उसे दोनो को ही बरदाश्त करना था पर दोनो को माँ का ही सहारा था। मां ने हर कदम पर मिनी का साथ दिया। मिनी के दोनो बच्चों को मां ने ही बड़ा किया। जब मिनी की पोस्टिंग किसी और जगह और सर की पोस्टिंग किसी और जगह थी तब मां ही मिनी के साथ रहती थी। दहेज़ के सारे सामान जो मां ने एक कमरे में सहेज कर रखे थे, मां ने स्वयं मिनी के पास पहुँचा दिए थे। कभी उसने अपनी ममता कम नही की। दिन पर दिन बीतते चले गए। इसी दौरान मिनी के पिताजी ने भी साथ छोड़ दिया । विवाह के 18 वर्ष बाद जब मिनी के पास सब कुछ हो गया तो मां की ऐसी हालत। सीढ़ियों पर बैठी - बैठी मिनी किसी और ही दुनिया में पहुँच गई थी। तब तक सुबह हो चुकी थी। मिनी नींद से जागी.....................क्रमशः

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ