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उपन्यास मां - भाग 35 आशा और विश्वास:- रश्मि रामेश्वर गुप्ता

बिलासपुर छत्तीसगढ़:- ग्रीष्मकालीन अवकाश लगने के पहले ही सासू माँ ने सर से कहना शुरू कर दिया था- जा न रे ! मेरी बहु को ले आ।
सासू माँ के रटने की वजह से शीघ्र ही दूसरी विदाई का समय भी आ गया। माँ ने पुनः दूसरी विदाई की रस्म के साथ मिनी को विदा किया। मिनी तो जैसे स्तब्ध अवस्था में थी। उसे कुछ पता नही चल रहा था कि उसके साथ ये क्या हो रहा है। जब भी तीसरी जेठानी की याद आती तो दिल बैठ ही जाता था। चुपचाप किसी गहरी अंधेरी दुनिया में बैठी हुई महसूस करती थी मिनी , पर पता नही वो कौन सी शक्ति थी जो मिनी के साथ थी जिसकी वजह से कभी मिनी की मुस्कान चेहरे से गायब नही हुई। लोगो को लगता था कि मिनी खुश है। कितना कठिन होता है किसी लड़की के लिए मायके को छोड़कर ससुराल जाना ये एक लड़की ही समझ सकती है। 
                          विचारों की गहनता मिनी को जैसे किसी गहरी खाई में ले जा रही थी। एक अजनबी दुनिया जहाँ उसे सारा जीवन बिताना था। जैसे ही मिनी ने ससुराल में कदम रखा।सभी बच्चे खुश होकर मिनी के पास आये। बच्चों ने बताया कि किसी की मम्मी वहां नही है। मिनी को बड़ा अजीब लगा। मिनी ने पूछा - "कहां गई है मम्मी?"
बच्चों ने बताया- "वो सभी गर्मी की छुट्टी में मायके गई हैं।"
मिनी को लगा एक पल के लिए कि गर्मी की छूट्टीयों में तो बच्चे जाते है घूमने, यहाँ उल्टा कैसे हो गया ? बच्चों ने बताया- सीआप आ रही हैं करके मम्मी लोग मायके चले गए।"
मिनी ने कहा -"अच्छा।" और उनकी बातों पर अधिक ध्यान नही दिया। सासू मां के पैर छुए। सासू मां बहुत खुश हुई। सर की बड़ी दीदी और जीजा जी भी वही रहते थे। सासु माँ, दीदी, जीजा जी, 3 जेठ, घर के सभी बड़े छोटे 10 बच्चे और 2 मिनी और सर् कुल 18 लोग घर में थे। सर् की बड़ी दीदी और जीजा जी ने भी खूब आशीर्वाद दिया मिनी को । खूब खुश हुए मिनी से मिल के। किसी भी जेठ के आगे तो मिनी को जाना ही नही था। मिनी ने स्वीकार कर लिया चलो कोई बात नही कोई दीदी ( जेठानी) नही तो क्या हुआ। वो सब संभाल लेगी ये सोचकर उसने राहत की सांस ली। 
एक दो दिन के बाद उसे सासू माँ ने झुंझलाते हुए बताया कि तुम्हारे आने से कुछ दिन पहले तीसरी जेठानी यहाँ आई थी क्योंकि उनका रहना बाहर होता था। उन्होंने तुम्हारी सभी दीदी से कहा कि सभी अपने-अपने मायके में जी भर के रहकर आ जाओ। मिनी आ रही है, उसे सब कुछ सम्हालने दो। बच्चों को भी पर्याप्त हिदायत दी गई थी कि किसी भी काम में मिनी का हाथ नही बटाना है। मिनी ने सुना जरूर पर किसी भी बात को अधिक ध्यान नही दिया। मिनी का ध्यान सिर्फ घर के काम में होता था।
                        मिनी को बस ये एहसास था कि अभी वो अकेली ही है तो घर साफ रहना चाहिए। सभी को समय पर सब चीज़ें मिल जानी चाहिए। सब्जी ठीक-ठाक बननी चाहिए। वो इतने में ही खुश रहती थी और बच्चों का साथ तो मिनी को बचपन से ही बहुत पसंद था। गांव की जिंदगी कैसी होती है मिनी ने उसी समय जाना। 
सुबह - सुबह 6 बजे के पहले ही उठना। स्नान करके पूजा करना फिर सबके लिए चाय बनाना। फिर घर में झाड़ू पोछा लगाना, थोड़ी देर बाद ग्वाला आता एक बड़ी बाल्टी में दूध भर के देता। घर में 3 गाय और 2 भैस भी थे। फिर नाश्ता, चाय 9 बजे तक। उसके बाद 12 बजे तक भोजन तैयार करना। सबसे पहले सासू मां को भोजन देना फिर सभी बच्चों को एक साथ बैठाकर भोजन परोसना , फिर सभी जेठ को एक साथ भोजन दीदी परोसती थी। फिर बर्तन साफ करना । 
                        किचन समेटते तक सासू मां नही सोती थी। जब मिनी को आराम करने भेज लेती थी तभी सासुमां भी आराम करने जाती थी। शाम को 4 बजे फिर से नाश्ता चाय। 6 बजे संध्या आरती कर के फिर रसोई में जाना तो सबके भोजन करते और बाते करते रात 10 तो बज ही जाते थे। मिनी को रोज़ रात में हरारत हो जाती थी। मायके में तो वो कभी 2 वक्त का भोजन भी नही बनाई थी। भोजन बनाते वक्त कभी हाथ जलते भी तो चुपचाप सह लेती थी। उसे मां की बातें याद थी। मां ने मिनी से कहा था - "समय आने पर तुम सब काम कर लोगी। मुझे तुम पर पूरा विश्वास है।"
ससुराल में तो बड़ा सा मिट्टी का चूल्हा था। बाजू में गोबर गैस से जलने वाला चूल्हा था। बड़े-बड़े बर्तन में खाना बनाना होता था। रसोई घर को गोबर से लीपना होता था। 
मिनी के लिए सब कुछ नया अनुभव था। बड़े जेठ सुबह गांव की प्रभात फेरी में रामनाम का भजन कीर्तन करते हुए जाते थे। सुबह सुबह ढोल मंजीरे की आवाज, मिनी को वहाँ का जीवन बहुत ही अच्छा लग रहा था। मिनी ने पहली बार ग्रामीण परिवेश को इतने करीब से देखा और महसूस किया। 
गर्मी का दिन था। वहाँ आम बहुत मिलते थे। मिनी ने आम का मुरब्बा भी बना लिया। अचार भी डाले और साबूदाने का पापड़ भी बना लिया। ईश्वर की कृपा से व्यंजन में कभी किसी ने कमी नही निकाली।
                 जून के महीने में जब आंधी तूफान आता तो। घर के सारे बच्चे पीछे घर से ही लगी हुई नदी की तरफ भागते क्योंकि वहाँ आम का पेड़ था। कभी कभी नदी के उस पार से खूब सारा मीठा-मीठा आम ला के मिनी को देते। सर् भी बच्चों से बहुत ही घुलमिल कर रहते थे। शाम को बच्चों को कहानियां सुनाना सर की आदत में शामिल था। कभी कभी मिनी की ही कहानी सुना दिया करते थे। मिनी सुनकर हंस दिया करती थी।
                          शाम को पानी डालकर आंगन और छत को ठंडा करके रखते। रात में कभी जब करेंट ऑफ हो जाए तो आंगन पूरा पलंग से भर जाता था, पर मिनी तो बहू थी न। उसे गर्मी में ही रहना होता। कभी -कभी छत नसीब हो जाती थी। चांवल का बड़ा सा बर्तन में भात पसाने का काम बड़ी दीदी करती थी। बड़ी दीदी सब्जी काटने में मदद कर देती। क्या बनाना है कितना बनाना है वो सब मिनी को बता दिया जाता था। सुबह शाम मिनी सासु माँ, दीदी और सर के जीजा जी के पैर छूती तो सभी बहुत खुश होते। सर के जीजा जी को धर्मग्रंथ के बहुत से श्लोक मौखिक याद थे। वो मिनी को सुनाया करते थे। मिनी और सर उनके आगे बहुत छोटे थे। मिनी को हमेशा वो यही कहकर आशीर्वाद दिया करते थे......"अचल होही अहिवात तुम्हारा, जब लगि गंग जमुन जल धारा।।" 
मिनी का अंतर्मन प्रफुल्लित हो उठता था........क्रमशः

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