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उपन्यास मां - भाग 39 मायके की परिधि:- रश्मि रामेश्वर गुप्ता

बिलासपुर छत्तीसगढ़:- सीमन्त संस्कार के बाद मिनी अपने स्कूल वाले गांव वापस चली गयी। मां साथ में रहती थी। मिनी दोनो तरफ के माहौल से बेहद परेशान रहती थी। न ससुराल वालो के सामने मायके का पक्ष रख पाती और न ही मायके में ससुराल का पक्ष और रखती भी तो क्या? 
                         ससुराल एक अजनबी जगह, अजनबी लोग जिनसे जीवन भर का नाता जुड़ा था। मिनी खामोशी से सबको समझने की कोशिश करती परंतु किसी को समझाने की कोई भूल उसने कभी नही की क्योंकि सारी बुराइयों की जड़ से वो भलीभांति परिचित थी इसलिए वो हर बात पर सिर्फ मुस्कुरा देती। माँ को भी और सासूमाँ को भी मिनी की यही बात बहुत पसंद थी। मिनी का मुस्कुराता चेहरा देखकर जैसे दोनो अपने सारे गम भूल जाती थी ।
 जितने मिनी के शुभचिंतक थे उनको इस बात का अहसास था कि मिनी कहती कुछ नही पर बहुत परेशान रहती है परंतु मिनी ने ससुराल के किसी भी सदस्य की बुराई कभी नही की। मिनी के कानो में गूंजती थी वो बाते जो उसे ताने के रूप में सुनाए जाते थे। खासकर ये बात कि जहाँ से मिनी आई है वहां से अब सात पीढ़ी तक कोई भी लड़की नही लाएंगे।
                             मिनी को बहुत दुख होता था इसलिए कि उसके कारण उसकी जन्म भूमि को कोसा जाता था, मगर वो चाहती थी कि ये बात गलत साबित हो और इसके लिए जरूरी थी ससुराल की बड़ाई करनी नही तो अगर मिनी ससुराल की बुराई करती तो सही में वहाँ कोई अपनी बेटी नही देता फिर एक दो सदस्य के कारण पूरे ससुराल को गलत कहना भी तो सही नही था पर ये एक दो सदस्य पूरे ससुराल के लोगों को किस तरह अपने गिरफ्त में और दहशत में रखे थे ये मिनी देख रही थी, फिर भी मिनी ये हरगिज नही चाहती थी कि लोग उसके ससुराल को बुरा कहे।
                           मिनी कभी-कभी इतनी परेशान हो जाती , इन सब बातों से कि जीने का बिल्कुल भी मन नही होता । मिनी ने सुना था कि जब कोई स्त्री बच्चे को जन्म देती है तो वो जीवन और मौत के बीच झूलती है। उस वक्त कुछ भी हो सकता है। उसकी जान भी जा सकती है। आखिर मन ही मन ईश्वर से मिनी प्रार्थना करने लगी कि इस बच्चे को जन्म देते वक्त ईश्वर मिनी के प्राण ले ले। मिनी ने ठान लिया कि चाहे अब कुछ भी हो वो हॉस्पिटल नही जाएगी।
डिलवरी डेट के 15 दिन पहले ही सासू माँ , सर के पास रटने लगी - "जा न बेटा ! मेरी बहू को ले आ।"
सर मिनी को लेने आ गए। मिनी ससुराल आ गई। तीसरे जेठ जेठानी तो बाहर रहते थे। उस वक्त वहाँ नही थे। बीच -बीच में आया करते और पर्याप्त दुखी करके जाया करते। 
                     गर्मी का दिन था। जब सभी जेठ घर के बाहर होते, मिनी को सासूमाँ अपने पास बुला ही लेती और खूब आशीर्वाद दिया करती। ये उनका रोज़ का काम था। कभी कभी सासूमाँ जब शाम को खाट पर लेटी रहती तब मिनी उनकी मालिश कर दिया करती। सासूमाँ बहुत मना करती। कहती - "ऐसी हालत में भी तुम मेरी मालिश मत किया करो मिनी!" पर मिनी मानती कहाँ। मिनी कहती -"कुछ नही होता माँ!"
                       घर के सभी लोग मना करते पर मिनी को भी सासूमाँ के पास रहना अच्छा लगता था। सासूमाँ फिर भी बहुत संकोच में मालिश करवाती थी। 
एक दिन मालिश करते वक्त मिनी की उंगली में नाखून और मसल्स के बीच में खाट से एक फांस चुभ गया। मिनी दर्द से चीख उठी। सासूमाँ बेहद घबरा गई। घर के सारे बच्चे दौड़कर मिनी के पास आ गए। चाची क्या हुआ , क्या हुआ पूछने लगे। दर्द में मिनी के आखों से आंसू बहने लगे फिर भी वो हंस रही थी और कह रही थी कुछ नही हुआ बस छोटा सा फांस ऊगली में लग गया। सारे बच्चे कूदने लगे "चाची दिखाओ कहाँ लगा?" मिनी हंस भी रही थी , रो भी रही थी। घर के सारे छोटे बड़े बच्चे मिलकर बहुत मुश्किल से मिनी के हाथ से फांस निकाले थे। सासूमाँ तो पसीने से भीग गई थी। जब मिनी की उंगली से फांस निकला तब उन्हें राहत महसूस हुई थी।
                        कुछ दिन बीतने के बाद एक दिन, सोमवार को रात में फलाहार करते वक्त बड़े जेठ, सर से कह रहे थे- "कल बहू को हॉस्पिटल ले जाना।" सर बोले -"हां।" उसी समय मिनी को दर्द होने लगा। मिनी ने जिद कर दी कि वो हॉस्पिटल नही जाएगी पर क्यों ये किसी को पता नही था। वो पहले से ही सबको कह कर रखी थी कि वो हॉस्पिटल नही जाएगी पर सब को मज़ाक लगता था। 
                 बड़ी जेठानी ने भी समझाया था कि विगत 20 -21 वर्षो से यहाँ घर में कोई बच्चा नही हुआ , सारे बच्चे हॉस्पिटल में ही हुए है । तुम हॉस्पिटल चली जाना पर ईश्वर की कृपा से वो नौबत ही नही आई। दर्द बड़ी तेजी से बढ़ता चला गया। गांव की 2 दाईयो को बुलाया गया। घर के सभी लोग घबराए हुए थे। सासूमाँ तो रात भर इधर से उधर कमरे के बाहर ही टहलती रही। सुबह 4 बजे डॉक्टर को बुलाया गया। रात भर छटपटाने के बाद मिनी ने बेटे को जन्म दिया। दाई माँ ने मिनी को , बेटे को दिखाया। बेटा तो बहुत प्यारा लगा पर मिनी ने सोचा-" हे भगवान! मेरी जान तो अब भी नही गयी । अब क्या होगा ?"
              घर में तो जैसे खुशी की लहर दौड़ गयी। सासूमाँ की खुशी का ठिकाना नही था। इतने दिनों बाद घर में छोटा बच्चा आया। घर के बच्चे बड़े सब बेहद खुश हुए। बच्चे को, पैदा होते ही खुशी के मारे पूरे घर भर घुमा डाले....क्रमशः

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