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उपन्यास मां - भाग 41 मायके की परिधि:- रश्मि रामेश्वर गुप्ता

बिलासपुर छत्तीसगढ़:- दिन भर घर के कामकाज और बच्चे की देखभाल में अब तो दिन पर दिन निकलते चले गए। बेटा अब 2 महीने का हो चुका था। सासूमाँ पहले से कुछ कमजोर लग रही थी। सर की बड़ी दीदी हमेशा सासूमाँ के साथ ही रहती थी। सभी जेठ भी अधिकांश समय सासूमाँ के कमरे में ही रहते थे। शाम का समय सासूमाँ मिनी के साथ ही बिताती। बाकी पूरे दिन तो मिनी को घूंघट में ही रहना होता। 
कभी.कभी सासूमाँ सर से कहती - "जा न बेटा ! बहू को मेरे कमरे में ले आ। दिन भर उनके जेठ मेरे साथ ही रहते है तो वो मेरे कमरे में आ भी नही पाती। आज दिन भर से उसे देखी भी नही हूँ।" फिर सर मिनी को माँ के कमरे में लेकर जाते तो दोनो को साथ मे बिठाती और खूब आशीर्वाद देती और ये जरूर कहती कि तुम दोनों बिल्कुल भी चिंता मत करना । देखना एक दिन तुम दोनों के पास सब कुछ हो जाएगा। तुम दोनों के द्वार पर एक दिन हाथी बंधा रहेगा देखना। अगर मैं नही भी रही तो मेरी बातों को याद रखना और साथ में ये भी कहती कि तुम दोनों के पास सबसे बड़ा धन संतोष धन है इसलिए कभी किसी बात की चिंता मत करना। 
                      मिनी को सासूमाँ के बातों की गहराई समझ नही आती थी बस ये समझ आता था कि सासूमाँ हमे हमेशा सुखी जीवन का आशीर्वाद देती हैं। जब सासूमाँ कहती कि तुम्हारे द्वार पर हाथी बंधा रहेगा तो मिनी मुस्कुरा देती थी।
एक दिन सासूमाँ सुबह से ही बेचैन होने लगी और सबसे कहने लगी - "बेटा! मुझे लग रहा है कि आज मैं नही बचूंगी।"
                    अगर अच्छा खासा कोई ऐसी बाते करे तो किसी को यकीन ही नही होता। घर मे भी किसी को सासूमाँ की बात पर यकीन नही हुआ। चौथे जेठ उस दिन कही बाहर जा रहे थे उन्हें भी सासूमाँ रोकने लगी और कहने लगी -"कही मत जा बेटा ! मुझे आज लग रहा है कि मैं आज नही बचूंगी।"
 जेठ भी सासूमाँ से बोले -"कुछ नही होगा माँ आपको। ऐसी बातें नही करनी चाहिए।" कहकर बाहर चले गए। उस दिन सासूमाँ खाट में भी नही लेटी। कहने लगी जमीन पर चटाई बिछाओ आज मैं जमीन पर ही आराम करूंगी। 
सुबह 9-10 बजे सासूमाँ सबको अपने कमरे में बुलाने लगी। सासूमाँ सर से कहने लगी-"बेटा! मेरा सर अपनी गोद मे रख ले। मिनी को भी बुलाओ मेरे पास।" 
मिनी दूध गरम करके गिलास में डाल रही थी, घबराहट में दूध का ग्लास भी गिर गया। मिनी दौड़कर सासूमाँ के पास गई। सासूमाँ का सिर सर की गोद मे था। पैर के पास मिनी खड़ी थी। सभी जेठानियाँ भी थी दीदी भी थी । मिनी को ऐसा लगा जैसे आज भी सासूमाँ मिनी को आशीर्वाद देने के लिए अपना हाथ उठा रही है। सासूमाँ मिनी की तरफ देखकर कुछ बोलने की कोशिश कर रही है । सासूमाँ आशीर्वाद की मुद्रा में बस हाथ उठा पाई और फिर हमेशा के लिए हम सब को छोड़कर सबके देखते देखते विदा हो गयी।
फिर तो जैसे पूरा घर वीरान हो गया। सासूमाँ का जाना मिनी और सर के लिए बहुत ही बड़ा सदमा था क्योंकि जिस दौर से दोनो गुज़र रहे थे उसमे सिर्फ सासूमाँ ही दोनो का बहुत बड़ा सहारा थी...........क्रमशः

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