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उपन्यास मां - भाग 48 मायके की परिधि:- रश्मि रामेश्वर गुप्ता

बिलासपुर छत्तीसगढ़:- बहुत मुश्किल से रात बीती, सुबह की रोशनी कमरे में आने लगी। मिनी ने आंसू पोछे। बेटा सो रहा था । मिनी तब स्नान कर तैयार हो गयी। बेटा सो कर उठा तब तक कुछ सामान जमा लिए। बेटे के जागने पर उसे नहलाया धुलाया। फिर कुछ खाकर दोनो मां बेटे स्कूल पहुचे। स्कूल के लोग बच्चे के साथ मिनी को देखकर कुछ हैरान हुए।
पूछने लगे कि बस आप दोनों ही है अभी? मिनी ने कहा- "जी ! अभी तो हम दोनों ही हैं।" किसी ने कुछ कहा नही पर उनके मन मे ये सवाल जरूर था कि ऐसे कैसे चलेगा ? दिन बीतते गए। मिनी रोज बच्चे को लेकर स्कूल जाने लगी। 
मिनी के स्टाफ में एक सर का घर पास में था। सर को मिनी पर दया आ गयी। सर ने मिनी से कहा- "मैडम! मेरा घर पास में ही है। घर मे आपकी भाभी रहती है। अगर आपको कोई परेशानी हो तो आप मेरे घर पर बच्चे को छोड़ सकती है। आपकी भाभी बच्चे का पूरा ध्यान रखेगी। चलिए मेरे घर, मैं आपको भाभी से मिलवाता हूँ।"
                    मिनी सर के घर गयी। स्कूल कैम्पस से बहुत करीब था घर। मिनी को सर भाभी से मिलवाए। भाभी से मिनी को इतना अपनापन मिला कि भाभी कहने लगी...."अब आप निश्चिंत होकर बच्चे को मेरे पास छोड़ सकती है। मैं पूरा ध्यान रखूंगी। आपको जब मन हो बीच - बीच मे आकर बच्चे को देख सकती है।"
मिनी को बड़ी राहत मिली। दूसरे ही दिन मिनी ने देखा कि बच्चे के लिए भाभी ने एक झूला भी बनवा रखा है। मिनी भाभी के इस अपनेपन से द्रवित हो गयी।
मिनी का दिन बड़ी मुश्किल से बीत रहा था । स्टेशन एरिये में मिनी पहली बार रह रही थी, वो भी एक छोटे से बच्चे के साथ। अजनबी जगह अजनबी लोग। रात में जब ट्रेन की आवाज आती तो मिनी का दिल जोर - जोर से धड़कने लगता। हर ट्रेन की आवाज पर मिनी, सर के आने का इन्तेजार करती। सर तो अपने घर से स्कूल आने जाने में व्यस्त थे फिर शादी में और उसके बाद जो घटनाएं घट रही थी, उन घटनाओं का सर के ऊपर न जाने क्या असर हो रहा है, मिनी को ये सारी बाते स्तब्ध कर देने वाली थी।
                                     लगभग 15 दिन के बाद सर एक दिन आये। जो भी स्थिति थी, वो सर के सामने थी। एक दिन रहने के बाद सर बोले...... "मुझे तो कल वापस जाना है , आप अपने स्कूल के किसी सर से कहना कि वो एक फोल्डिंग पलंग लेते हुए आ जाएंगे।" मिनी सर की बात से बड़ी आहत हुई। मिनी ने फिर से पूछा - "क्या बोले आप ?"
 सर ने कहा कि आपके स्टाफ से बहुत सारे लोग रोज ट्रेन से आते जाते है तो वही से खरीद कर लेते आएंगे। यहां तो कुछ नही मिलता। आप सर को पैसे दे देना।" मिनी ने फिर कहा कि मैं किसी सर से कैसे ये कह सकती हूं ? सर ने कहा- "मैं कह दूं ?"
मिनी ने कहा- "नही, मैं कह लूँगी।"
मिनी को लगा था कि सर को मिनी की हालत पर तरस आएगा। वो तुरंत ही उसके लिए व्यवस्था कर देंगे पर मिनी का भ्रम कांच के जैसे टूट गया। सर अपने घर चले गए।
                    दूसरे दिन बड़े ही संकोच के साथ मिनी ने एक सर से विनती करते हुए अपनी बात कही। सर ने कहा- "कोई बात नही मैंम , इसमे कोई बड़ी बात नही। हम लोग आखिर रोज तो आते ही है।" दूसरे ही दिन सर एक फोल्डिंग पलंग लेकर आ गए।
                    अब मिनी को लगने लगा कि आखिर कब तक बच्चे को ऐसे ही भाभी के घर पर छोड़ती रहेगी। कुछ दिनों की बात अलग होती है।.............. क्रमशः.......

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