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उपन्यास मां - भाग 50 मायके की परिधि:- रश्मि रामेश्वर गुप्ता

बिलासपुर छत्तीसगढ़:- जिसका कोई नही होता उसका तो ईश्वर ही होता है यह बात बिलकुल सोलह आने सत्य है। 
समय ने करवट ली। मिनी के दिन जैसे तैसे गांव वालों के भरपूर सहयोग से कट रहे थे । मिनी ने एम ए प्रीवियस की परीक्षा उत्तीर्ण कर ली। अब तो बिटिया भी आ गई। बिटिया को मिनी ने मायके में जन्म दिया क्योंकि मिनी को जीने की बिल्कुल भी इच्छा नहीं थी। 
             वीउसने मां से सुना था कि बुआ जी का देहांत डिलिवरी के समय हुआ था तब से आज तक किसी की भी डिलिवरी घर में नही हुई। मिनी ने ठान लिया की वह अब वही उसी जगह पर डिलिवरी करवाएगी जहां बुआ की डिलिवरी हुई थी। 
              मां की हालत डर के मारे खराब हो रही थी। मां इस बात से डरती थी की अगर मिनी को कुछ हो जाता है तो वो उसके ससुराल वालो को क्या जवाब देगी, पर नही मिनी ने जो ठान लिया सो ठान लिया।
                 ससुराल वालों के जवाब ने मिनी का काम आसान कर दिया था । तब ससुराल में बटवारा हो चुका था। ससुराल वालो ने कह दिया कि अब यहां मिनी के डिलिवरी के लिए कोई भी कमरा खाली नही है इसलिए उसे मायके में ही रहना होगा। 
                    बुध पूर्णिमा की रात को मिनी आंगन में पलंग पर लेटी हुई चांद को देख रही थी। जब किसी से मन की बात न कह सकें तो चांद बहुत बड़ा सहारा होता है। आंखों से आसू बह रहे थे। मिनी सोच रही थी कि जो जवाब ससुराल से मुझे मिला वो तो कोई गरीब से गरीब व्यक्ति भी अपनी बहु को नहीं देता। हालाकि मैं डिलिवरी इस बार मायके में ही करवाना चाहती थी , पर ससुराल वालों का ये कहना कि तुम्हारी डिलिवरी के लिए अब यहां जगह नहीं, मन को अंदर तक टीस से भर दे रहा था। 
                       मायके में सभी का व्रत था। पूरा पड़ोस अपना ही घर था। सभी लोग फलाहार कर रहे थे। मिनी बस रोती जा रही थी। अचानक से दर्द उठा और मां की घबराहट और बढ़ गई। जल्दी से मां ने सभी को बुलाया। डिलिवरी करवाने वाली दाई आई । डॉक्टर आए। एक इंजेक्शन लगा और बिटिया आ गई।
परिवार के सभी लोग खुश हो गए। उन्हे लगने लगा जैसे सभी के व्रत का पुण्य मिल गया हो। खबर ससुराल पहुंची। सर भी बिटिया को देखने आए। देखकर बहुत खुश हुए और शीघ्र ही आकर ले जाने का वादा करके चले भी गए पर मिनी स्तब्ध थी........क्रमश:

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