बिलासपुर छत्तीसगढ़:- मिनी का जैसे ही दूसरे जिले में स्थानांतरण हुआ , मां और पिताजी को लगने लगा कि अब मिनी सही में हमसे दूर हो गई। शायद ससुराल भेजने का अहसास भी उन्हें तभी हुआ। मां और पापा दोनो बहुत ही दुखी लग रहे थे। मिनी ने सभी को धीरज बंधाया और आते रहने का वादा करके वो नए जिले में रहने लगी। तभी मां और पिताजी मिनी के पास भी कुछ दिनों तक रहे। पापा दोनो बच्चों से बहुत स्नेह रखते थे। दोनो बच्चों के घर आने का बेसब्री से इंतजार करते रहते थे। मिनी अब मायके कम ही जा पाती थी।
एक दिन अचानक पापा का फोन आया। मां पापा दोनो भईया भाभी के पास थे। पापा ने मिनी से कहा - " मिनी ! तुम मुझसे मिलने आ जाओ । मुझे ऐसा लग रहा है कि अब मैं कुछ दिन ही रह पाऊंगा।"
मिनी को, पापा की बातें डराने वाली थी। वो तुरंत ही दोनो बच्चों को लेकर पापा से मिलने चली गई। पापा के साथ दो दिन रही । पापा खुश थे। अचानक रात में पापा को बहुत गर्मी लगने लगी बेचैनी लगने लगी। मिनी पापा के पास ही बैठी पापा को पंखा झल रही थी हाथ पैर में ठंडे तेल से मालिश करते हुए बातें कर रही थी। पापा भी मिनी से बातें कर रहे थे । बातें करते करते पापा को नींद आने लगी। मिनी पास ही बैठी थी ।पापा ने मिनी से कहा - "मिनी ! जाकर सो जाओ अब थोड़ा ठीक लग रहा है।" पर मिनी नहीं गई। वो पास ही बैठी थी। थोड़ी देर बाद ही पापा की सांसे अजीब सी चलने लगी। मिनी दौड़कर मां को बुलाने गई। मां और भैया भाभी तुरंत आए और फिर सभी के सामने पापा सबको छोड़कर चले गए।
पापा के जाने के बाद मिनी अपने आपको असहाय महसूस करने लगी। किसी भी बच्चे को मजबूत बनाने के लिए सिर्फ पिता का नाम ही काफी होता है। मां ममता की मूरत होती है तो पिता एक मजबूत कवच की तरह होता है जो बच्चे को एक दृढ़ आधार प्रदान करता है।
पिता के जाने के बाद मां का जीवन बचाने के लिए जरूरी था कि मां को बच्चों के साथ रखा जाए। 6 माह होने के बाद मिनी मां को अपने साथ ले आई जिससे मां बच्चों के साथ रहकर थोड़ी खुश रह सके।
पिताजी कहते थे - " मिनी ! तुम यहां भी एक घर बनवा लो जिससे तुम जब यहां आओ तो अधिक दिन तक आराम से अपने घर में रह सको।"
मिनी ने वहां जमीन पहले ही खरीद ली थी। पापा की इच्छा पूरी करने के लिए मिनी ने वहां घर का काम शुरू करवा दिया। शायद कहीं से पापा की इच्छा इस बात को बल पूर्वक मिनी से पूरा करवा रही थी। वहां का काम भैया देख रहे थे। पैसे देने का काम मिनी का था। बीच बीच में आना जाना होता रहता था। घर भी बनकर तैयार हो गया। पापा जी का सपना जैसे फलीभूत हो गया। पापा को छोड़कर गए हुए दो साल हुए थे कि अब भैया की नजर मां के बैंक अकाउंट पर जाने लगी।
मां के नाम पर पापा ने कुछ पैसे बैंक में जमा कर रखे थे। जब भी भैया को बैंक से पैसे निकालने होते तो मिनी को फोन करते कि वो मां को उनके घर पहुंचा दे क्योंकि मां के दस्तखत के बिना भैया पैसा नहीं निकाल सकते थे। जब बैंक का काम हो जाता तो मिनी फिर मां को ले आती थी। ऐसा कई बार हुआ। एक बार तो मां के पैसे निकालकर भैया ने गाड़ी भी खरीद ली। मां ने कुछ नहीं कहा,पर जैसे ही पैसा खाते से निकलता मां की बुराई करनी शुरू कर देते। मिनी को लगता क्यों बिना वजह दोनों के बीच में विवाद हो इसलिए मिनी मां को अपने पास ले आती थी।
धीरे धीरे मिनी के बच्चे बड़े होने लगे। मिनी और सर ने काफी मेहनत की । लोन के सहारे दोनों ने एक घर भी बना बनाया खरीद लिया।
अब पापा को मिनी से दूर गए हुए तीन वर्ष हो रहे थे। वास्तव में बच्चे चाहे कितने भी बड़े हो जाएं पर पत्नी के लिए जो सहारा पति का होता है, वो कोई भी नहीं बन सकता।
मिनी अब ससुराल की परिधि में रह रही थी। कभी जब ससुराल के लोग आते तो मां बहुत ही डरी सहमी रहती। एक मलाल मां के मन में रहता कि वो बेटी के घर में रह रही है। पति के जाने के बाद पत्नी की जो स्थिति होती है वो अपनी सासू मां के अंदर मिनी ने देखा ही था, अब वही करुण स्थिति मिनी मां के अंदर महसूस कर रही थी। मां कहती कुछ नहीं थी पर मिनी के साथ रहते हुए भी अपने आप को असहाय महसूस करती थी। मिनी ने कभी मां से कुछ नहीं मांगा। मां खुद ही ढाल बनकर मिनी के साथ थी, मिनी और क्या मांगती पर मां को जब वो असहाय अवस्था में पाती तो तड़प कर रह जाती थी।
मायके में भी सभी शुभचिंतक हो ऐसा नहीं होता। मां के, मिनी के साथ रहने पर कुछ लोगों को आपत्ति होती तो कुछ भी कहते । भैया भाभी के पास जाकर कहते कि मिनी तो मां को नौकर बना कर रखी होगी। सारा काम मां से करवाती होगी। मां को तुम्हारे पास रहना चाहिए। अभी जब मां के पास ताकत है तो वो मिनी की सेवा कर रही है मगर जिस दिन ताकत नहीं रहेगी तब वो तुम्हारे पास रहेगी। तब बहु भी क्यों करेगी सेवा ?... आदि आदि। इधर मां की स्थिति दिनों दिन मिनी के ससुराल के बारे में सोच सोच कर नाजुक होती जा रही थी। हालाकि ससुराल के लोग कुछ नहीं कहते थे। मिनी भी मां को समझाती रहती थी पर मां का दिल कोई भी नहीं समझ सकता। अब तक भैया ने मां के लिए एक रूमाल तक नहीं लिया था। भैया जहां रहते थे वहीं के होमियोपैथी डॉक्टर से मिनी मां का नियमित रूप से इलाज करवाती थी पर दवाई लेने के लिए हमेशा मिनी ही आती थी कभी भैया मां के लिए दवाइयां नहीं लिए। मां की देखभाल मिनी और सर ही करते थे। इस बात पर भी मिनी और सर को कोई एतराज़ नहीं था पर भैया को कभी मिनी के ऊपर दया नहीं आई। कभी उन्हें ये नहीं लगा कि सिर्फ दवाई लेने की खातिर मिनी इतनी दूर से आती है कभी वो भी मदद कर दे।
एक बार मिनी के जेठ के लड़के की शादी में मिनी मां को लेकर चली गई। वहां जो डर और मलाल मिनी ने मां के चेहरे पर देखा वो उसे कभी भूल नहीं पाएगी। एक पत्नी के लिए पति का साथ ही सबसे बड़ी ताकत होती है। पति के बिना पत्नी का जीवन आधा भी नहीं रह पाता। चाहे कोई उसके लिए कुछ भी करे पर जो खुशी और गर्व पति के साथ रहकर पत्नी को मिलता है वो खुशी और गर्व उसे कोई भी ला के नहीं दे सकता। ससुराल के माहौल से भी मां अपरिचित नहीं थी।
मिनी सब समझती थी पर मां के इस मलाल को दूर नहीं कर पाती थी। बेटी के घर रहने का दुख ,पीड़ा मां को अंदर ही अंदर तोड़ दे रहा था।
मां कभी सीढ़ी नहीं चढ़ पाती थी। जब पापा थे तब भी वो सीढ़ी चढ़ने से परहेज़ करती थी। मिनी के घर में भी वो नीचे ही रहना पसंद करती थी कभी छत पे नहीं जाती थी।
सर के मित्रों और उनके परिवार के साथ सर का और मिनी का एक बार बद्रीनाथ जाने का प्लान बना। मिनी ने भैया को फोन पर बताया कि मां को सीढियां चढ़ने में तकलीफ होती है शायद उन्हें बद्रीनाथ लेकर जाना उचित न हो,तो वो अपनी काम वाली बाई के साथ मां को घर पर रखेगी। उसने भैया से कहा कि आप भी आ जाओ तो मां को अच्छा लगेगा।
भैया ने कहा कि उसे मां के खाते को सुधरवाना है। तो मां के दस्तखत की जरूरत पड़ेगी इसलिए मां को उनके पास ही पहुंचा दे। मिनी ने मां को भैया के घर पहुंचा दिया। एक हफ्ते के बाद मिनी बद्रीनाथ से घूमकर आई तो भैया से पूछा - "बैंक का काम हुआ कि नहीं ?"
भैया ने कहा - " नहीं अभी कुछ दिन और लगेंगे।"...............क्रमश:
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