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विकलांग बालक व विद्यालय में जाँच एवं मूल्यांकन प्रक्रिया:- सुमन शर्मा


दिल्ली :-  विद्यालय में आकर यदि कोई बालक असफल होना सीख रहा है या उसमें हार जाने का भाव बढ़ रहा है तो यह समस्त शिक्षा विभाग एवं उसमें कार्य करने वाले कर्मचारियों के चिंतन, व्यवहार एवं क्रिया प्रणालियों पर एक बड़ा प्रश्न चिन्ह हैं l 
मैं अपने प्रबुद्ध साथियों का ध्यान विद्यालय में हमारे विकलांग विद्यार्थियों (विशेष रूप से बौद्धिक विकलांगता से प्रभावित) विद्यार्थियों की जाँच एवं मूल्यांकन पद्दतियों की ओर लेकर आना चाहती हूँ l 
विकलांगता अधिकार अधिनियम के संदर्भ में विकलांग बालकों को शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार मिला है l इसके लिए सरकार और असंख्य गैर सरकारी संगठनों के द्वारा विद्यालयों में प्रयासपूर्वक अपने वित्तीय संसाधनों, समय एवं ऊर्जा का वृहद् स्तर पर निवेश भी किया गया l नि:संदेह इससे हमारे विकलांग वर्ग के बालकों को अत्यधिक लाभ भी मिला l इससे विकलांग बालकों के विद्यार्थी बनने का संघर्ष भी कम हुआ और उन्हें अनिवार्य सुविधाएँ मिलनी भी आरंभ हुई (हालाँकि इस क्षेत्र में बहुत काम किया जाना अभी शेष हैं) l 
यहाँ विद्यार्थी बनने के बाद, पूरा वर्ष शिक्षा के वातावरण में शिक्षकों और साथियों के साथ बिताने के बाद जब परीक्षा भवन में प्रवेश करते हैं तब उनके सामने एक बार फिर वहीँ संघर्ष खड़ा हो जाता हैं जो विद्यालय में प्रवेश के समय उन्होंने महसूस किया था l परीक्षा से पूर्व उनके लिए एक विशेष अध्यापक, विशेष शिक्षण सहायक सामग्री, विशेष शिक्षण विधि का प्रयोग करने वाला विद्यालय परीक्षा भवन में उनकी स्थिति और विशेष आवश्यकताओं को दरकिनार करते हुए उन्हें वहीँ प्रश्न पत्र थमा देता हैं जो उसके साथियों के पास होता हैं l जिसमें उसे उत्तीर्ण होने के लिए न्यूनतम अंक हासिल करने होते हैं l अपनी बौद्धिक अक्षमता के चलते ये दिव्यांग बालक ‘परीक्षा में न्यूनतम अंक’ नाम की इस नदी को पार नहीं कर पाता और असफल हो जाता हैं l विद्यालय में विशेष अध्यापक और विकलांग बालक दोनों इस परिदृश्य में असहाय दिखाई देते हैं l 
‘नो डिटेंशन पालिसी’ के हट जाने से ये समस्या बहुत गंभीर रूप में हम सबके सामने हैं जिसके लिए तत्काल उचित योजना बनाने और उसे क्रियान्वित करने की जरूरत हैं l 
विद्यालय के विकलांग विद्यार्थियों की आवश्यकता, प्रशिक्षण और क्षमताओं के अनुसार ही उनकी जाँच एवं मूल्यांकन प्रक्रिया निर्मित होनी चाहिए l विकलांग विद्यार्थियों के लिए जाँच एवं मूल्यांकन प्रक्रिया का निर्माण करने में विद्यालय में इन विकलांग विद्यार्थियों के साथ काम करने वाले अध्यापकों की सहभागिता भी सुनिश्चित होनी चाहिए l जिससे विद्यार्थी और अध्यापक अनावश्यक दबाव में न आए l वर्तमान अध्ययनों में अनगिनत केस आए हैं जहाँ जाँच एवं मूल्यांकन प्रणाली ने विद्यार्थियों को कक्षा में असफल घोषित कर दिया हैं जबकि वास्तव में विद्यालय और अध्यापक और बालक के निरंतर प्रयासों से इन विद्यार्थियों के जीवन में बेहतरीन बदलाव आए हैं l जिससे उनका जीवन सहज एवं सुगम बना हैं l बच्चे के जीवन में आए बदलाव उसे, अभिभावकों को, अध्यापकों और विद्यालय को भी सकारात्मक अहसास कराते हैं, उनके जीवन में बहुत कुछ अच्छा होने की आशा जगाते है दूसरी ओर कक्षा का वार्षिक परिणाम नकारात्मक फैलाता हैं l विकलांग विद्यार्थी, उनके अभिभावक, उनके शिक्षक और अप्रत्यक्ष रूप से समाज के मध्य एक द्वंदात्मक स्थिति उत्पन्न हो जाती हैं l शिक्षा जो सबको रोशनी और स्पष्टता देती है वह विकलांग विद्यार्थियों के लिए द्वन्द का कारण कैसे हो सकती हैं ? आइए हम सब मिल कर इस दिशा में कोई सार्थक पहल करे और जाँच एवं मूल्यांकन प्रणालियों के ऐसे नव स्वरुप का विकास करे जहाँ सभी स्वयं को जान सके और आगे बढ़ सके l

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