गाजियाबाद : अद्विक प्रकाशन और कथा रंग के संयुक्त संयोजन में पुस्तक मेले के अंतिम दिन "लघु कथा विमर्श एवं पाठ" तथा "कविता का वर्तमान" कार्यक्रम आयोजित किए गए। प्रथम सत्र की अध्यक्षता विख्यात लेखक व समकालीन भारतीय साहित्य के संपादक बलराम ने की। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि थे प्रसिद्ध व्यंग्यकार एवं आलोचक सुभाष चंदर। बलराम ने कहा कि हममें से बहुत सारे लोगों को यह गुमान होता है कि उन्हें बहुत कुछ आता है। ज्ञान का घमंड हममें से सबको होता है। अपने मत के समर्थन में उन्होंने अंग्रेजी लेखक कार्ल्सबर्ग की एक कहानी के गोरे और अश्वेत व्यक्ति के मध्य हो रहे संवाद का उल्लेख करते हुए कहा कि अंततः अश्वेत व्यक्ति बोला "ज्ञान इतना ज्यादा है कि जिसे न काला जानता है, न गोरा जानता है"। उन्होंने कहा कि लघु कथा लेखकों को इस बात का विरोध ध्यान रखना चाहिए कि लेखक के ज्ञान और जानकारी की वजह से लघु कथा भटक न जाए। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि के रूप में बोलते हुए सुभाष चंदर ने कहा कि वह लोग लघु कथा के क्षेत्र में कदापी न आएं जो कहानी न लिख पाने के कारण लघु कथा लिख रहे हैं। लघु कथा के क्षेत्र में बहुत सारे वह लोग आ रहे हैं जो कहानी नहीं लिख पा रहे हैं। उन्हें लगता है कि छोटी प्रस्तुति में जितना हमको कहना है कह डालें। ऐसे लोग लघुकथा को नुक्सान पहुंचा रहे हैं। लघु कथा एक आंदोलन है। लघु कथा एक लंबी यात्रा करके यहां तक आई है। लिहाजा आने वाली पीढ़ी को इस परंपरा को पूरी शास्त्रीयता से आगे ले जाना होगा।
राजधानी के साहित्य अकादमी परिसर में आयोजित पुस्तक मेले में प्रथम सत्र में सुभाष नीरव,सदानंद कवीश्वर, सुरेन्द्र अरोड़ा,अंजू खरबंदा, संदीप तोमर नेतराम भारती, केदारनाथ शब्द मसीहा, , उपमा शर्मा, बीना शर्मा, वीना सिंह, विनम्र विक्रम सिंह के अलावा संचालक रिंकल शर्मा ने भी रचना पाठ किया। दूसरे सत्र में अध्यक्ष सुरेंद्र सिंघल, मुख्य अतिथि विज्ञान व्रत, कमलेश भट्ट कमल, गोविंद गुलशन, भारत भूषण आर्य, रवि यादव, अनिल मीत, सरिता जैन व रिंकल शर्मा ने काव्य पाठ किया। कार्यक्रम का संचालन आलोक यात्री ने किया। अद्विक प्रकाशन की ओर से अतिथियों का स्वागत स्वाति चौधरी और जोया खान ने किया। अद्विक प्रकाशन के स्वामी अशोक गुप्ता ने आगंतुकों का आभार व्यक्त किया। इस अवसर पर आलोक यादव, शिवराज सिंह, डॉ. सुमन गोयल, शकील अहमद, अनिल शर्मा, प्रताप सिंह, उत्कर्ष गर्ग व बिपिन कुमार के अलावा बड़ी संख्या में श्रोता मौजूद थे।
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