गर तुम नहीं तो ‘बस-अंत‘!
गर तुम हो तो ‘सावन‘
गर तुम नहीं तो ‘निर्जर वन‘!
.गर तुम हो तो ‘साथ‘
गर तुम नहीं तो ‘खाली हाथ‘
गर तुम हो तो मैं ‘निश्चिंत‘
गर तुम नहीं तो ‘हृदय-चित‘!
गर तुम हो तो ‘सम्बल‘
गर तुम नहीं तो अंतर्मन ‘निर्बल‘!
गर तुम हो तो मैं ‘निहाल‘
गर तुम नहीे तो चित्त ‘निढाल‘!
गर तुम हो तो ‘सम्वेदना‘
गर तुम नहीं तो बरबस ‘वेदना‘!
गर तुम हो तो ‘थाह‘
गर तुम नहीं तो मौन ‘कराह‘!
‘प्रिय! मैं तो वैदेही की तरह
पथगामिनी बनना चाहती थी, चलती साथ ‘वनवास‘
पर तुम कुछ यूँ खामोश चल दिए
और मेरे हिस्से में आई
उर्मिला-यशोधरा की तरह ‘रनिवास‘!
आख़िर हमारे दरम्यान ‘गलतफहमी‘
की वजह ही क्या रही?
मैंने तो यही कहा था न कि- ‘रूको, मत जाओ....‘
और तुम मान बैठे- ‘रूको मत, जाओ!‘‘
- डाॅ0 सुषमा सिंह
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